सुमन ने ताला खोलकर घर के अंदर पैर रखा,दो महीने ही तो हुए है, मां को गुजरे.. दो महीने से घर बंद हैं ,और देखो कितनी धूल ....वो एक एक सामान को छू छू कर देख रही थी, मानो अपनी यादो को ताजा कर रही हो...उसके हाथो के पोर में धूल लग रही थी ...और आंखो में नमी तैर रही थी..!
ये मां का संदूक... पीढा, खूंटी पर टंगी शाल.. और कोने में रखे गमले,पौधे तो सूख ही गये थे, और ये मां की आराम कुर्सी ,जैसे ही वो मुडी.. कुर्सी हिल रही थी, जैसे इस पर कोई बैठा हो.. और अब अचानक उठकर चला गया हो..!
कमाल है... आंगन में हवा का नामोनिशान भी न था.."
फिर..!
कौन..!
उसने जोर से पुकारा ..!
कुर्सी अभी भी हिल रही थी.. उसने दो कदम ओर आगे बढाये तो खिडकी के पर्दे के पीछे हलचल हुई, अब वो घबराने लगी थी, फिर भी वो आगे बढी.. और जोर से पर्दा पकडकर खींच दिया, घबराहट के मारे उसकी चीख निकल गयी, एक काली बिल्ली खिडकी से कूदकर दरवाजे की ओर भागी...!
©sonnu Lamba
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Nice one
Thanks @sonia
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