अपनी अपनी दुविधा सबकी ,
अपनी अपनी बात,
हर रात के बाद आता दिन,
हर दिन के बाद होती रात,
सुख दुख आंख मिचौली खेले,
कुछ भी न रहता कभी साथ,
फिर भी दम साधें हम करते,
खुशियों का इंतजार ,
जीवन पहेलियां हैं बुझाता ,
यूं ही दिन रात ... ।
धूप छांव सी दुविधाएं बिछातीं ,
पल पल नईं बिसात ,
जीत हार का खेल नही है ये,
मन समझें ना ये बात,
हारता मन भी बुनता है ,
बार बार जीत के ख़्यालात ...!
अलग अलग हैं दुविधा सबकी ,
छिपी छिपी हैं दर्द की सौगात ।।
©®sonnu lamba
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
सुन्दर रचना
Thank you ji
Nice
थैंक्यू सो मच
Please Login or Create a free account to comment.