मेरे लिए ये जगह एकदम नयी थी , मैं होस्टल रूम से बाहर आकर लोन में बैठ गयी, कभी नहीं सोचा था इस तरह अकेलापन महसूस होगा , खैर जिद तो मेरी ही थी, यहां इतनी दूर आकर पढने की, पापा मम्मी ने तो खूब मना किया, कहीं भी पास में एडमिशन करा देते हैं, घर पर रहना सेफ है, लेकिन मैं ही.... "
खैर..!
कहीं आस पास से मंदिर की घंटी की आवाजें आ रही थी, मैं उसी दिशा में चल पड़ी, थोडी दूर पर ही मंदिर था, मंदिर की भव्यता देखते ही बनती थी, मैं सम्मोहित सी मंदिर के मुख्य द्वार से प्रवेश कर गयी, भीड़ ज्यादा नहीं थी, मैने हाथ पैर धोये और भीतर प्रवेश किया, हाथ बढ़ा कर घंटी बजायी और जैसे ही सामने देखा, एकदम सामने मां की भव्य मूर्ति थी, उनकी आंखों में इतनी ममता थी लगा जैसे कह रही हों, अकेली नहीं हो तुम, मैं हूं ना.. " मेरे दिल को ऐसा सूकून मिला, लगा जैसे इस अजनबी शहर में कोई अपना मिल गया हो।
©®sonnu Lamba
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Nice
Awesome
Thank you deepali and ruchika
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