बाढ ने बहुत कहर ढाया इस बार ..गांव के गांव डूब गये...बहुत मुश्किल से घर में दो चार समान जोडे थे सब डूब गये..और समान का क्या ..घर ही ढह गये...सयामू तो मलबे में दब के मर गया... रह गया उसका बडा सा परिवार..छःबच्चे उसके..चार बच्चे उसके भाई के ..उसका भाई भी सारा दिन नशे में डूबा रहता था..एक दिन रिक्शा लेकर सडक पर चला गया ..और सडक दुर्घटना में मारा गया..।
सयामू ...भी अब काल का ग्रास बन गया ..इतने बडे परिवार का रिक्शा चलाकर ही पेट भरता था...लडको को भी छोटी मोटी मजूरी में लगा रखा था,जाने कैसे कैसे परिवार का खर्च चल रहा था..!
और अब ये बाढ का कहर... लेकिन परिवार को सही जगह तो ले ही जाना है... सोचकर सबसे बडा बेटा, जो खुद अभी सौलह बरस का है...अपने पिता के रिक्शे पर सारे परिवार को वहां से लेकर निकल तो आया...लेकिन लगातार यही सोच रहा है..इतना बडा परिवार..रिक्शा भी नही खींच पाता..तो आदमी कैसे..?
ये जो जनसंख्या नियंत्रण के कार्यक्रम है ..इनके बारे में क्यूं नही सोचते लोग...?
पहले ही मूलभूत सुविधाओं से वंचित गरीब मजदूर तबका और ऊपर से बढती जनसंख्या ..दबाब ही दबाब..अपने ऊपर भी और धरती के ऊपर भी..।©®Sonnu lamba☺
(अभी आपने पढा त्रासदी में फंसा परिवार, जिसमें बहुत सारे छोटे बच्चे हैं, जो मूलभूत सुविधाओं से वंचित है और दोनों भाई अपनी गलती और आपदा के कारण काल का ग्रास बन गये हैं... अब उनके पीछे बचा, परिवार क्या और कैसे करेगा, इन सब विसंगतियों का सबसे बडा कारण, जरूरत से ज्यादा जनसंख्या, जागरूकता का अभाव और अशिक्षा है, जब इन तीन से आजादी मिले तब जाकर गरीबी जैसे असुर से छुटकारा मिलेगा और इस तरह के अनावश्यक दबाब से मुक्ति... सबको मिलकर काम करना होगा, सरकार को कानून बनाने होंगें, योजनाएं बनानी होगी और समाज को उनके एक्जीक्यूशन में सहयोग करना होगा... तभी धरती मां का बोझ कुछ कम होगा...)
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