उस तंग गली की ,नुक्कड पर..
मासूम छोटे बच्चो का समूह...
मेरी नजरे अचानक अटक गयी उन पर..।
फटकर लीर हुए वस्त्रो के, .
रंग खो चुके थे कंही,
बहुत उदास लगा मुझे वो बचपन...।
जीवन से अनभिज्ञ ,
मुरझाये चेहरो से झांकती सूनी आंखे ,
तैर रहे थे जिनमें कुछ निश्छल स्वपन..।
खाता देख किसी को,
ललचायी नजरो से देखकर,मुँह फेरना..
बहुत अनुभवी लगा मुझे वो बचपन....।
मैली उंगलियो से...
एक-दूसरे के बाल संवारता,
वो निर्जीव सा बचपन......।
दुनिया की चमक...
बौनी लगी उस पल..
बेबसी उनकी कह गयी...
क्या ? यही है ...
भारत का असली दर्पण..॥
©®sonnu Lamba
(This poem was published in
"Denik jagran" meerut ...dated 18 may 1996.)
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Beautiful Sonnu ji
निर्धन बच्चों की पीड़ा दर्द का क्या खूब वर्णन👌👌रचना का अंत एक गंभीर प्रश्न करता हुआ
Thanks dear virdhi
Thank you, bhai kumar
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