यही कोई रात के बारह बजे होंगें.. मेरे पिता खेतो पर पानी लगाने गये थे... वैसे तो कभी कभार उन्हें कोई अडोसी पडोसी किसान भी मिल जाता, लेकिन उस दिन कोई न था, उनसे पहले जिसका नम्बर था, वो शायद जल्दी चला गया था आज.. रास्ते में भी न मिला था..!
वे रजवाहे पर गये सीधे.. पहले वाले के खेत में चलता पानी बंद किया.. सब देखा ठीकठाक, वापस अपने खेत की ओर आने लगे.. ।
अंधेरी रात थी एकदम, हाथ में टार्च थी, कंधे पर फावडा...
अपने कदमो की आवाज ही डरावनी लग रही थी.. सन्नाटा सांय सांय बोल रहा था...!
दिन और रात में कितना अंतर है, दिन में ये सब खेत कितने सुंदर दिखते है और रात में देखो, भयानक... कहीं किसी तरफ एकटक देख लो तो ऐसा लगता है कि कोई खडा है... पास जाकर देखो तो पता चलता कि ईंख का ही कोई मैडा अजीब संरचना लिए है.. जब तक पता चलता तब तक डर के मारे हवा खराब हो जाती...!
मेरे पिता डरते नही थे जल्दी से, मिलटरी से रिटायर थे, भूत प्रेतो को मानते नही थे... इसलिए बेधडक जाते थे कहीं भी..!
उस दिन भी वे आ रहे थे, तेज कदमों से खेत की ओर ,पानी को बराबर देखना पडता है, जाने कब कहां से मेढ तोड़ रास्ता बदल ले. .और जहां उसे लगाना है, वहां ना जाये... इसलिए.. .।
जैसे ही वे आगे बढे उन्हें लगा कि एक सफेद चादर उनके पीछे उडी आ रही है... पहले तो उन्होने बहम समझा.. .फिर उनको अपने साइड पर भी सफेद सफेद चादर उडती सी दिखने लगी... पहले उन्होनै इगनोर किया, लेकिन कब तक कर सकते थे, उन्होने तेजी से पीछे मुडकर देखा , कुछ नही था ...फिर उन्हें लगा मेरा ही बहम है, और चलने लगे,
लेकिन फिर वही महसूस हुआ.. अबकी बार उन्होने अपनी सारी इन्द्रियों को उसी में लगाकर महसूस किया कि वास्तव में क्या है.. तो उन्हें फिर सफेद चादर दिखी...।
अब वे थोडा घबरा गये और उन्होने घुडक कर बोला... कौन है बे. ..सामने आ..! लेकिन कोई प्रत्युत्तर नही, वे फिर अपनी राह आगे बढे ..लेकिन फिर वही एहसास..!
अब वे बहुत परेशान हो गये और घबराने भी लगे मन ही मन में. .अबकी बार उन्होने एक तरकीब निकाली ..वे उसी दिशा मे मुडकर चलने लगे, जिधर से उनकी पीठ के पीछे वो चादर महसूस हो रही थी आती हुई.. .!
कुछ दूर चले थे, रास्ते पर टार्च से नजर लगाए और ये देखकर खुश थे कि कोई नही हैं वहां... !
तभी उन्हें अबकी बार अपने पीछे एक काली परछाई दिखायी दी ..जैसे ही वे टार्च की रोशनी उस परछाई के ऊपर डालते गायब हो जाती. ..।
अजीब तिलिस्म था. .खेतो के पानी से तो पूरा ध्यान ही हट गया था, ये आज क्या हो रहा था, वे समझ नही पा रहे थे, बार बार चैक करते.. कुछ नी मिलता, जैसे ही चलते.. परछाई पीछे पीछे महसूस होने लगती...।
वे थक हार कर एक खेत की मेढ पर बैठ गये.. ओर दोनों ओर देखने लगे.. हाथ पर बंधी घडी में टाइम देखा एक बज रहा था.. मतलब एक घंटे से वो बस उसी रास्ते पर एक ओर से दूसरी ओर ,....चादर ओर परछाई का रहस्य ही.. सुलझा रहे हैं ,उन्हें खुद पर भी खीझ हुयी जब कुछ होता ही नही तो. ..
लेकिन अपनी आंखों देखी भी कभी झूठ हो...!
अब उन्होने निर्णय लिया कुछ भी हो.. अब वे सीधे अपने खेत जायेंगें, वहां जो काम करना है, उसे करके सीधे घर निकल जायेंगें.. पीछे जो आ रहा है ,आता रहे, ये उसकी समस्या है मेरी नही.. "
ये सोचकर वे फौजी की तरह उठ खडे हुए और चलने लगे लेकिन अबकी बार घबराहट हो रही थी ..वे जैसे ही चले, उन्हें वो परछाई फिर साथ साथ चलती महसूस होने लगी.. लेकिन अब ना उन्होने उसे ललकारा, ना ही मुडकर देखा ,अपने आप ही हनुमान चालीसा का मन ही मन जाप करने लगे... धीरे धीरे स्वर भी तेज होने लगा.. !
भूत पिशाच निकट नही आवै ..
महावीर जो नाम सुनावै ...!
संकट से हनुमान छुडावै,
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै..!!
©®sonnu Lamba
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