पूरी रात उसे नींद ही नही आयी, कल ओफिस में उसे बोस ने बिना उसका पक्ष जानें ही डाँट दिया, पहले ही मूड ओफ था, घर पर आकर भाई से झगडा हुआ तो मां ने भाई का पक्ष ही लिया, एक वेबसाइट पर जरूरी रजिस्टरेशन करना था, लास्ट डेट थी, वो भी नहीं हो पाया, सब कुछ इतना अपसेट हो गया कि नींद भी नहीं आयी, अब आगे का दिन क्या खाक अच्छा होगा, वो ये सोचते सोचते बिस्तर से जल्दी उठ गयी, और मोर्निंग वॉक के लिए निकल गयी, कुछ ताजी हवा मिलेगी तो सही लगेगा, चलते चलते ख्यालों में खोयी, काफी दूर निकल गयी, सेंट्रल पार्क तक..।
कुछ देर सुस्ता लेती हूं, लौटते वक्त रिक्शा ले लूंगी, नहीं तो बहुत थकान हो जायेगी, एक पेड़ों के झुरमुट के बीच बनी बेंच पर बैठ गयी, चिड़ियों के चहचहानें की आवाजें, मंदिर से आती घंटी की आवाजें, बच्चो के खेलने की आवाजें और ठंडी हवा, सूकून तो पहुंचा रही थी, लेकिन फिर भी मन शांत नहीं था, उसने सोचा चलूं, ओफिस भी जाना है..।
तभी एक दस साल की बच्ची उसके सामने आ गयी, हाथ में पिंजरा था, पिंजरे में रंग बिरंगी चिडियां थी,
"दीदी... पिंजरा ले लो, सस्ता देंगें और लोगो से"
उसने दो मिनट ठहरकर उस लडकी को देखा मुरझाया चेहरा और बिखरे बाल, फिर चिडियां को देखा चींचीं चीचीं जैसे बोल रही हो दीदी निकालो,
लड़की बोल रही, दीदी... ले लो. .!
उसने अपनी जैकेट की जेब टटोली,
पैसे..हैं भी कि नहीं.. ?
सौ का एक नोट निकला, मेरे पास तो यही है दोगी, इतने में..! उसने कहा,
ठीक है, लो दीदी, वो पिंजरा मेरे हाथ थमा इतनी तेजी से गयी, जैसे उसे उन पैसो से कुछ जरूरी चीज लेनी हो..!
चिडियां अभी भी चींचीं कर रही थी, उसनें पिंजरा उसी बेंच पर रख दिया जहां थोडी देर पहले वो बैठी थी, और पिंजरे का लोक खोल दिया, धीरे धीरे चिडियां उसमें से निकल फुर्र हो गयी, खाली पिंजरे को पत्थर से तोडकर उसने डस्टबीन में डाला और चल पड़ी, घड़ी पर नजर डाली, देर हो रही हैं, मां भी नाराज होगी, बाहर सडक पर निकलते ही रिक्शा सामने था, चलोगे भैया..!
हां बैठिए दीदी, किधर चलना है "
"रामनगर "
जी..!
कहकर उसने रिक्शा दौडा दिया, सड़क पर अभी भीड नहीं थी, जरा दूर वो पिंजरा बेचने वाली लड़की चाय की दुकान पर कुछ खाती हुई नजर आई..!
घर पहुंची तो मां, सामने मिल गयी, कहां चली गयी थी, मुझे फिक्र हो रही थी कि रोज तो वॉक से जल्दी आ जाती थी, ले चाय पी, और जल्दी नहा..!
मैने तेरी पसंद का पोहा बनाया है,
जल्दी जल्दी तैयार हो ओफिस को लिए निकल रही थी, भाई आकर बोला, आ.. मैं छोड देता हूँ,
उसने मना किया कल की बात याद करके,
अरे आ जल्दी, देर हो जायेगी तुझे, कहकर हाथ पकड़ कर गाड़ी की ओर ले गया, और इस तरह वह एकदम सही दस बजे आफिस में दाखिल हुई, सामने बोस खडे थे,उन्होनें मुस्कुराते हुए गुड मोरनिंग विश किया, वो अपनी सीट पर आ गयी, और कम्प्यूटर ओन किया, पास वाली सीट पर बैठी रीना ने कहा बडी फ्रेश लग रही हो आज,
फिर उसे याद आया, वो तो रात भर सो भी नहीं पायी थी,कल का दिन...?
हां , वो एक बेकार दिन था, लेकिन आज की सुबह अच्छी है और मुस्कुराते हुए, वो अपने काम में लग गयी..अशांति मन से उन चिडियों की तरह फुर्र हो चुकी थी ।
✍️सोनू लांबा
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