यहां इतनी ऊंचाई पर माइनस दस डिग्री तापमान पर डयूटी देते देते, आज मन बहुत उदास है, हर जगह सफेद सफेद बर्फ , हरियाली देखनें को भी आंखे तरस गयी, मार्च का लास्ट चल रहा है, खेतो में सरसो फूली होगी क्या खूब लगते हैं, हरे हरे पौधो पर पीले बसंती फूल, गेहूँ की कच्ची बालियां, आंखो को सूकून पहुंचाता गहरा गहरा हरा रंग,आज खेतों की बहुत याद आ रही हैं, और वो शहतूत का पेड जिसके मीठे मीठे शहतूत जो खुद ही डाल से टूटकर नीचें गिर जाते थे तो, यूं ही उठाकर खा लेते थे, बिना धोयें, अपने खेत की तो मिट्टी भी नहीं किरकिराती मुंह में, फोन तो यहां एलाउ ही नहीं है, चिट्ठियां भी जल्दी से नहीं आती..!
"हवलदार राजबीर ..ओए कहां खोया है,यारा..! देख तेरे घर से चिट्ठी आई हैं " चहकते हुए एक साथी की आवाज कानों में पड़ी..!
ओए ला... !
एकदम अधीर होकर जल्दी जल्दी चिट्ठी खोली, बहन की थी, शुरू में लिखा था, घर में सब ठीक है भैया,शहतूत पक गये हैं, अंत में लिखा था, खेतो में सरसो फूली है,और गेहूँ में बाली आ गयी है भैया, फोटो भेज रही हूं, और क्षण भर में मेरी आंखो के सामनें फोटो नहीं पूरा खेत था, हरियाली जैसे आंखो में समा गयी थी..और शहतूत का स्वाद मुंह में घुल रहा था ।।
✍️सोनू लांबा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Bahut sunder
थैंक्यू @namrata pandey
ख़ूबसूरत
थैंक्यू @charu
Nice story
Very nice
Very nice one
सभी मित्रों को बहुत बहुत धन्यवाद
bahut hi pyari kahani
थैंक्यू जी
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