धरती तुमने सब संभाल रखा है,
या आसमान तुमने......
कि सब आराम से चलते फिरते,
हंसते गाते एक साथ रहते हैं,
केवल मनुष्य ही नहीं,
अन्य असंख्य जीव भी,
लेकिन कुछ सालों से कुछ ठीक नहीं है,
चारो ओर हाहाकार है ,
सजा...!
हां ,सजा जैसा ही तो है ये,
पल पल भयभीत रहना,
डर के साये में घुट घुट जीना,
ये सजा किसने दी है,
तुमने धरती या आसमान तुमने,
जिसने भी दी है ,
आखिर संभालना तो तुमको ही है ,
तुम भूल गये क्या..?
सूरज..!
अब तुम ही कुछ कहो ना..
एक ऐसा दिन देखना है मुझे,
जब मैं बेफिक्र हो गहरी नींद में सो जाऊं,
उन तमाम रातो की नींद बकाया है,
जो मैने बैचेनी में गुजारी हैं, डरते हुए,
दिन की नींद में बहुत सुकून होता है,
जब तुम्हें पता हो तुम्हारे आसपास,
सब जाग रहे हैं..
और जीवन मस्त चल रहा है ।।
©sonnu Lamba
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