*---------प्रेम--------*
प्रेम शब्द की गहराई को,
ढूँढती हूँ.....मैं अनन्त में,
भूल रही हूँ.....ये कहीं कि,
अन्त नही है इस अनन्त में..।
पीडा गहरी और गहरी ,
होती जाती है मन में ,
उठती तरंग को समेट लूँ ,
या मिल जाऊँ मैं तरंग में..।
विस्तृत होती इतना मैं भी..
तो खो जाती आज अनन्त में,
रिक्त कितना हो गयी हूं,
पाकर ये एहसास खुद में..।
उस पीडा को महसूस किया है ,
जबसे मैने अपने मन में ,
हाँ...प्रेम की गहराई को..
पा गयी हूँ मैं स्वंय में..।।
*-------सोनू------*
( 1994 )
©®sonnu Lamba
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