ये जीवन है-२
गरीबी भारत की आज भी बहुत बडी समस्या है....किन्तु अब इसमे भी सन्देह ने स्थान बना लिया है ....समझ नही आता signal पर खडे सभी बच्चे अपने लिए मांग रहे हैं या इसके पीछे भी कोई व्यापार है....।
वैसे गरीब होने का मतलब भीख मांगना कतई नही है ,ना ही ये कोई समाधान ही है ,गरीबी में इंसान तब अत्यधिक मजबूर हो जाता है जब खाने पीने के लाले पड जाते है और फिर स्वाभिमान को ताक पर रख कर वो कुछ भी करने को तैयार हो जाता है....परन्तु सब एक जैसे नही होते ,कई लोग विपरीत परिस्थतियो मे ओर ज्यादा मजबूत हो जाते है...।
मेरे पापा अपने बचपन का किस्सा सुनाते थे कि उनके एक पडोसी थे जिनके घर कई दिन रोटी नही बनती थी,राशन के अभाव में, लेकिन वे नियम से सुबह सुबह घर की साफ सफाई करने के बाद....चूल्हा जरूर जलाते थे ताकि उनके घर से आते धुंए को देखकर पडोसी समझे कि घर मे खाना बन रहा है....घर के बच्चे कईं कईं दिन तक साग व छाछ पर रहते थे.....और कोई खाने को कहे तो बहुत ही सहजता से मना कर देते थे...।
कहने का सार केवल इतना ही है कि इस तरह के किस्से अक्सर विपरीत परिस्थतियो मे बहुत होंसला देते है.....आत्मबल मे वृद्धि होती है......और मन मे बार बार ख्याल आता है.....#ये जीवन है....#
Sonnu Lamba
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