उस चारदीवारी के भीतर बहुत चालाकी से कैद कर लिया था मुझे उसने ...वहां बाहर से कोई रोशनी की किरण ही नही आती ...मेरा मन वहां से भागता ,कोई दरवाजा ,खिडकी ढूंढता लेकिन नही मिलता ..मैने बहुत ही युक्ति से एक रोशनदान खोजा ,मैं उस रोशनदान तक बहुत मशक्कत से पहुंचा और बाहर की ओर झांका ..बाहर सडक पर बहुत लोग आ जा रहे थे ..लेकिन कोई मुझे देख नही पा रहा था ..मैं आवाज देना चाहता था लेकिन हलक से आवाज निकलती ही नही थी ,मैने पूरी जान लगाकर बोलना चाहा तो लगा जैसे किसी ने मुझे अपनी मुट्ठी में जकड लिया है ..अब मेरा दम घुट रहा था ..मैं रोशनदान सहित छोटा होता जा रहा था ..सिकुडता जा रहा था ..ये क्या मुझे सांस आनी ही बंद हो रही थी ..."
और मैं अपनी पूरी ताकत लगा एक झटके से उठ बैठा .."
इतनी सर्दी में भी पसीने से तरबतर ...ये कैसा सपना था ?
इतना डरावना ..कैद ..गुलामी जैसा ..."
मैने एक गहरी लम्बी सांस ली और पाया कि आजादी कितनी कीमती है और गुलामी सपने में भी दमघोटू ..।।
©sonnulamba
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