"यहां अंधेरे में क्यों बैठी हो सृष्टि... "
"किरण ने रोशनदान से झांक कर पूछा.. "
"चलो बाहर आओ... देखो सूरज दादा आये हैं, सबके लिए कुछ ना कुछ लाये हैं, तुम्हारे लिए भी.. "
सूरज दादा तो हमेशा ही मेरे लिए कुछ ना कुछ लाते हैं, मैने ही उनके भरोसे को तोड़ा है, उन्होने कहा था प्रकृति से खिलवाड़ मत करो.. लेकिन मैने और मेरे साथ रहने वाले लोगो ने कब सुना..? और आज हालात ये हैं कि..?
चाहे जो भी हो सृष्टि तुम ऐसे उदास नही बैठ सकती हो, थकना, ठहरना तुम्हारा काम नही है... "
अरे सूरज दादा तो तुम्हारे लिए एक चिट्टी लाये हैं, बाहर आओ तनिक तो मैं सुनाऊं... "
खत का नाम सुनते ही सृष्टि ने दरवाजा खोल दिया और सूरज दादा को सामने हंसता मुस्कुराता पाकर प्रणाम किया...!"
"हां, लाओ, मेरी चिट्ठी दादा.. "
"अरे वो रही किरण के पास.. "
किरण मैं पढकर सुना देती हूं, मुझे भी देखना है, दादा तुम्हें क्या कहना चाहते हैं.. "।
प्रिय सृष्टि....
अब जो हो चुका, उसे सोच सोच कर निराश होने से भी कुछ ना होगा, तुम्हे बोध है, ये अच्छी बात है लेकिन अपराध बोध से भी कुछ नही होगा.. बस तुम्हारी जीवन ऊर्जा चुकी रहेगी और मेरा काम है हर एक को ऊर्जा देना, हर उदास, निराश शय में नये प्राण फूंकना ....! मैं तुम्हें यूं तो नही रहने दूँगा...
वो देखो पहली किरण को देखते ही फूल खिलखिला उठे, पेड पौधे सब तन कर खडे हो गये है, चिडिया चहचहाने लगी है, बादल अपनी यात्रा पर निकल गये हैं, तारे अपनी नाइट डयूटी खत्म कर, आराम से सो गये हैं और मैं भले ही दिन पर दिन ओजोन लेयर के हट जाने से क्षुब्ध हूं लेकिन नियत समय से आ गया हूं...!
फिर तुम ही क्यों निराश हो ? आगे बढ कुछ उत्तरदायित्व संभालो.. उस उदास नदी को देखो जिसे तुम लोगो ने गंदा किया है... जुट जाओ के, अब ये न होगा, संयम से काम लो, जब तुम जुट जाओगी तो आधा काम प्रकृति खुद कर लेगी, जो पेड पौधे बचे हैं उनकी साज संभाल करो, जो काट दिये गये, विकास का नाम ले लेकर, उनकी याद में कुछ ओर पौधे लगाओ, जल और जंगल बचाओ, करने से ही कुछ हो सकता है प्यारी सृष्टि, थक हार कर निराश बैठने से नही और फिर मेरी जो ओजोन लेयर कट फट गयी, उसकी मलहम पट्टी कौन करेगा..?
जरा सी सुबह होती नही कि तुम लोग हल्ला मचाने लगते, बहुत धूप हैं, बहुत गरमी है और भागते हो अपने अपने कमरे में... और ए. सी. में बैठ जाते हो..!
ऐसे बनोगे आप लोग मजबूत, ये कोई समाधान नही है, विटामिन डी की कमी होगी फिर थके मांदे और अवसाद में आ जाओगे...!
क्या तुम चाहते हो ,ये जीवन इतना बेबस हो जाए, मेरे रहते तो कम से कम नही, इसलिए सुबह उठकर रोज पहली किरण का स्वागत करो फूलो की तरह और खुश रहकर, खुशहाल जीवन की कमान संभालो...!
तुम्हारा सूरज दादा.. ""
किरण चिट्ठी पूरी पढ गयी, थोडी देर के लिए सृष्टि सोच में पड गयी, ये खत था, मार्गदर्शन या चेतावनी दादा की, फिर किरण ने टोका..
"अरे उदास होने को तो मना किया ना दादा जी ने.. ""
वो अपनी गहन सोच से बाहर निकली और मुस्कुराने लगी..।
शुक्रिया किरण ये चिट्ठी मुझ तक पहुंचाने का, शुक्रिया दादा जी, मुझे चेताने का ...!
अब ये सृष्टि कभी हिम्मत नही हारेगी और अपनी बहन प्रकृति का पूरा ख्याल रखेगी...।।
©®sonnu Lamba
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Beautiful 💐💐
संदेशप्रद रचना मैम
Thanks @Kumar sandeep 🌻
Thanks @neha
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