परिधान..

एक बेहद सामान्य लडकी का अपने हौंसलो के भरोसे एक मुकाम हासिल कर, आत्म निर्भर होने की कहानी..!

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Sonnu Lamba
Sonnu Lamba 18 Sep, 2020 | 1 min read
Self-confidence Life Sefhelp Obstacles of life Independent Dreams

अरे ! आसीमा, आज.. निम्मी कहां है..'"

उसको एक शादी में जाना है मैम..वो आज नही आयेगी..""

अरे तो कुछ देर आकर अपना काम पूरा कर जाती ..""

क्या ..उसे पता नही कि आज कितने ड्रेसज देने हैं ,कम्पलीट करके..."परिधान बूटिक '"का नाम उसके काम की वजह से ही है..""

पर तुम लोगो को कभी समझ नही आता..""

मैम...कुछ कपडे कल चले जायेंगें..""

इतना तो चलता है...""

नही ...यहां इतना उतना कुछ नही चलता..'"

हम पहले ही सोच समझ के टाइम लेते हैं..और उस पर फिर खुद ही डिले करें..।""

और उससे भी बडी बात जब कोई आंखो में अपनी नयी ड्रेस का सपना लेके आता है...और वो उसे ना मिले तो उसका सारा क्रेज ही खो जाता है..।"

मुझे हर कम्पलीट ड्रेस के साथ उसे पाने वाले की खुशी देखना बहुत अच्छा लगता है..।"

अरे तुम नही समझोगी...।""

चलो तुम काम करो..।""

लगता है आज मशीन पर मुझे ही बैठना होगा..।"

कहते हुए....रौनक ने फटाफट मशीन संभाल ली..।"

और सिलाई में मशगूल हो गयी..।"

जब वो पैरो से सिलाई मशीन चलाती थी ,तो उसे लगता जैसे हवा में उड रही हो ...यही उसका पैशन था..।""

घूमती मशीन के साथ जाने कब बीस साल पीछे जा खडी हुई..।पांच बच्चो में सबसे बडी थी वो ..चार बहने फिर एक भाई ..यही कोई 14 बरस की रही होगी सब समझने लगी थी ..मां बापू ने बेटे के लिए उन चार बहनो को धरती पर उतार दिया था ...ना उन्हे किसी के पढने पढाने से कुछ लेना देना ना किसी ओर सुविधा से ..। खुद खेतो में मजदूरी करते दोनो ...रात दिन, बस दो वक्त की रोटी का संघर्ष ...कपडे भी कोई पुराने दे जाता वही पहनती चारो बहने...बस भाई के नखरे उठाये जाते पता नी कौन से ताले की चाबी समझ लेते हैं ,बेटो को मां बाप..।हम बहनो के जिम्में सारे घर का काम..और गालियां भी पडती कभी कभी ..जब मां ज्यादा परेशान होती ..वो भी क्या करती, गरीबी ने उसे, वक्त से पहले बूढा कर दिया था..दिन पर दिन कमजोर होती जाती.. और बिना मजदूरी के गुजारा नही..बस एक बात अच्छी थी उसकी, वो अपनी बेटियों को किसी के खेतो पर नही भेजती..बापू भी कहते कि '"इन्हे ले जाया कर '"..काम में तेरा साहरा हो जायेंगी ,लेकिन नही..वो साफ मना कर देती ..शायद वो उन नजरो को पहचानती थी जो जवान होती बच्चियों के ऊपर लोग रखते हैं..।

पास ही सरकारी स्कूल था..जब टीचर जी, मां के पास आई थी कि बच्चियों को स्कूल भेजो तो उन्होने मना नही किया...

बोली ..'"देख ल्यो मैडम" म्हारे पास देणे को तो एक भी रूपा ना पढाई के लिए और घर का रोटी पानी झाडू बुहारी भी इनी को करणा ...

"वो आप चिंता मत किजीए.."

टीचर जी ने उत्साहित होते हुए कहा था.."

पैसे नही लगेंगें ..सरकार देगी कापी किताबें और एक वक्त का खाना भी..।"

मां को ओर क्या चाहिए था..जाने दिया..।

उसकी लगन देख कर टीचर जी उसके पास बैठ जाती ..और पूछती बताओ रौनक क्या करना चाहती हो..।

मैडम जी...क्या गरीबो को चाहते रखनी चाहिए.."?

आप जानती तो हो घर का हाल..।""

अरे हां...क्यूं नही रखनी चाहिए...।"

तुम बुनो सपने...

छोटे छोटे ही सही..

फिर उन्हे पूरा करने की कोशिश करो ..मैं मदद करूंगी..।""

उसकी मासूम आंखे चमक उठी ..."

सच .."

हां ,सच ..बताओ क्या चाहती हो..।"

मैडम जी मैं ज्यादा तो नही जानती...लेकिन मैं इस गरीबी के चक्रव्यूह को तोडना चाहती हूं..।

अब मैने पढने की शुरूआत की इस उम्र में..कब मै पढाई लिखाई पूरी करूंगी ..पता नही इस स्कूल से आगे भी जाऊंगी या नही..।

यहां तो आपने मुझे सीधे कक्षा पांच में ले लिया.."

अरे ..ऐसे थोडे ही ले लिया तुम साल भर तक मेरे पास आके पहले भी पढती रही हो ...तभी तो मैने तुम्हारी मां से बात की...तुम में इतनी लगन है कि ऐसा लगता है ..सब कुछ जल्दी जल्दी सीखना चाहती हो..।

जी मैडम जी...मेरे अंदर छटपटाहट है..मैं इस गरीबी से लडना चाहती हूं.. जिसमें दो वक्त की रोटी पाने में ही इंसान मर खप जाता है..।

कह तो तुम सही रही हो..""

देखो इससे निकलने का एक ही तरीका है ..सोच समझ कर सुनियोजित तरीके से एक आय बनायी जाये..।""

जी मैडम...जी.."

और हां...सोचने समझने के लिए पढना बहुत जरूरी है..इसलिए पढना कभी मत छोडना..."।

जी ..नही छोडू़ंगी.."

जब तक यहां हूं..ये स्कूल तो कैसे भी पूरा करूंगी.."।

शाबास!

अच्छा बताओ ,सिलाई कढाई जानती हो कुछ..।

जी जानती हूं...मां ने सिखाया ..थोडा बहुत खुद भी कर लेती हूं..।

घर में मशीन नही हैं सूईं धागा ही चलाना जानूं अभी तो..।

चलो कोई नी..."

कल से तुम स्कूल के बाद आंगन बाडी जाना सिलाई कढाई सीखने...'"

तब कुछ ओर सोंचेंगें आगे.."

जी मैडम जी..."

उस दिन पहली बार उसकी मायूस आंखो में चमक आई थी..

उसे लगा था कि वो अब शायद कुछ कर पायेगी.."

टीचर जी की तरह ही उसने आंगन बाडी की बहनजी का भी दिल जीत लिया था.. और उन्होने खुश होकर उसे सरकार से ही एक सिलाई मशीन दिलवा दी थी.."

फिर क्या था...'"

फिर तो उसने अपनी पूरी ऊर्जा ..तन...मन उसी में लगा दिया ..बहुत जल्दी कपडो की सिलाई करनी शुरू कर दी ,और बाहर से भी लोग कपडे सिलवाने आने लगे ...बहनो को भी उसी काम म़े लगा लिया...हालांकि बहने जी चुराती लेकिन दो पैसे आते किसको अच्छे नही लगते ..जिंदगी तो सभी की बेहतर हो रही थी ..इसलिए लगी रहती साथ..."।

और साथ ही गांव के स्कूल से दसवीं की परीक्षा भी पास कर ली ...।।

और एक दिन टीचर जी ने ऐसी खबर सुनाई कि उसके सपनो को पंख मिल गये...""

रौनक ...अब तुम अठारह साल से ऊपर हो गयी हो..।

हाई स्कूल की परीक्षा भी पास कर चुकी हो..।

अब तुम किसी भी बैंक से स्वरोजगार के लिए लोन लेकर ..अपना बूटिक खोलो..।

क्या ये संभव है... मैडम जी..।

हां ,संभव है...कल चलना मेरे साथ बैंक में..।

और फिर सामने आया ये *..परिधान*

"परिधान."..मेरी जान बसती है इसमें..ये लडकियां नही समझती.."

मां बापू तो कब के मर गये ...गरीबी और बीमारी लील गयी उन्हे तो ...,

बहनो की उसने शादियां करा दी ...वे अपने अपने घरो में ईश्वर की दुआ से खुश हैं..।


और भाई...कुछ नही कर पाया ..नशे की लत का शिकार है ..अभी भी नही सुनता...कभी किसी बहन से कभी किसी बहन से पैसे मांगता रहता है...मन बहुत वितृष्णा से भर जाता है कभी कभी ...क्यूं एक बेटे के लिए लोग इतनी बेटियों की बलि चढा देते है ..चाहे पैदा करके उन्हे गरीबी का दंश झेलने को छोड दें या गर्भ में ही मरवा दें ...है तो बलि ही..।

और फिर ये बेटे किसका उद्धार करते हैं...ना इनसे मां बाप के लिए कुछ होता...ना अपने खुद के लिए..।"

मैडम...मैडम..

आसीमा आवाज दे रही थी..

मिसेज कपूर आई है...अपनी ड्रेसेज लेने.."

अरे हां...बिठाओ उन्हे...'"

वो जैसे लम्बे सपने से जगी थी...अपनी पूरी जिंदगी को ही दोहरा लिया ..आज उसने..।

नमस्तै ,मिसेज कपूर...ये लिजीए...आपकी ड्रैसेज तैयार हैं..।"

रौनक तुम्हारा यही अंदाज मुझे बहुत पसंद है.."

जब कहती हो...तभी तैयार मिलती हैं ड्रैसेज ..."।

लिजीए...ट्राई तो किजीए..."

घर जाकर ही कर लूंगी...तुमने बनाया है तो कमीं होगी ही नही.."

जी...आपका प्यार है बस..'"

अच्छा चलती हूं....रौनक.."

जी आईयेगा फिर..."

हां..परिधान के सिवाय कहां जाऊंगी.."

मुस्कुराते हुए...मिसेज कपूर चली गयी .."

और रौनक फिर भावुक हो गयी..."

परिधान.. एक दिन की बात है ही नही..."

ये मेरी जिंदगी की अग्निपरीक्षा हैं.."'.मेरे हौंसलो की उडान..""

आज आंखो में नमीं है लेकिन होठो पर मुस्कान हैं..।"

©सोनू लाम्बा


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