"अरे छोटू इधर आ.. "
"चल ये बर्तन उठा.. मेज साफ कर, "
"अरे देख... ये अभी भी गंदा है, सही से हाथ चला जरा.. "
"अरे छोटू.. आर्डर ले उधर नम्बर ४ टेबल से,"
"अरे छोटू... नम्बर ५ टेबल पर पानी पहुंचा जरा.. "
ऐसा लग रहा था जैसे उस ढाबे पर छोटू के सिवाय कोई ओर काम करने वाला ही ना हो... जिसे देखो, छोटू छोटू..
मैं एक कोने में बैठा बहुत देर से ये देख रहा था, छोटू यही कोई सोलह बरस का दुबला पतला लडका था, जो उस वक्त उस ढाबे में फिरकी की तरह घूम रहा था.. "
इतना काम.. तरह तरह के मिजाज के लोग, लेकिन शिकन तक नही चेहरे पर... उसके..!
मैं ये सब सोच ही रहा था कि वो मेरे पास ही आ पहुंचा...
"साहब... क्या खायेंगें.. "
"आर्डर.. "
"मैं एकदम सकपका गया.. "
"खाने के बारे में तो अभी तक सोचा ही नही.. "
"ऐसा करो.. तुम अपनी पसंद का खाना ले आओ आज.. "
हमारी क्या पसंद, नापसंद साहब, हम तो कुछ भी खा लेते हैं... "
"कुछ तो होगा ही, सोचो और ले आओ.."
साहब.. आज तक किसी ने ऐसा आर्डर दिया ही नही.. आप पहले इंसान हैं जो मुझे ये मान दे रहे हैं.. "
अरे, भावुक मत हो यार.. ये बता तेरी उम्र क्या है.?
"पन्द्रह साल है साहब, "
"और पढने लिखने की उम्र में तुम यहां ढाबे पर...?
"करना पड़ता है, साहब... क्या करें .."
मां, अनपढ हैं, कुछ घरो में साफ सफाई का काम करती है, "बापू है ही नही,दो साल पहले गुजर गये , दो छोटी बहने हैं..."
"ना करें... तो क्या करें..?
"लेकिन तुम्हें नही लगता, थोडा पढ लेते तो कुछ ओर अच्छा कर सकते थे.. और थोडा सम्मान भी मिलता.. "
लगता है ना, साहब... क्यों नही लगेगा..?
"इज्जत हर कोई चाहता है.. "
"फिर पढाई... क्यों नही की ..?
"करता हूं ना साहब.."
क्या... कैसे..? मेरे मुंह से ये दो सवाल फटाफट फिसले..!
"हाई स्कूल का फार्म भरा है.. "
दिन में यहां काम करता हूं... और रात में घर जाकर पढाई, बहनो को भी पास के ही सरकारी स्कूल में डाला है.. "
"लेकिन.. यहां दिन भर इतना खटने के बाद. ..पढाई ,
कोफ्त नही होती तुम्हें.. थकते नही क्या..?
"थकते हैं ना, क्यों नही थकेगें... "
अरे छोटू.. छोटू, पीछे से आवाजें आ रही थी,
अरे क्या कर रहा है.. वहां.. जल्दी आर्डर लें.. "
मैं अभी आता.. कहकर, वो फुर्ती से भागा.. "
और मैं सोचता रहा कि मोबाइल फोन, लैपटॉप लेकर, ऐ. सी. में बैठे विद्यार्थी कैसे पस्त रहते हैं, पढाई करने में.. एकदम हलकान, कोर्स, सलेबस, सौ चिंता लिए... और कईं तो नजर हटते ही मोबाइल गेम में लग जाते हैं ,सोशल मीडिया पर टाइम पास करने लगते हैं.. "
वो फिर सामने खडा था ..खाना लेकर, लिजीए साहब, यहां का मशहूर हांडी पनीर,दाल मखनी, नान और सलाद.. "
"काफी है साहब.. या ओर कुछ भी लाये.. "
"आपने बताया तो कुछ था नही.. "
नही कुछ नही चाहिए ,यही काफी है, लेकिन अपनी बात तो पूरी करो..!
हमारी क्या बात साहब, हम थक जाते हैं, मन करता है कि निढाल पडे रहें लेकिन हर वक्त ये याद रहता है कि पढेंगें नही तो आगे कैसे बढेंगें..?
देख लेना आप साहब एक दिन मेरा इससे भी बडा रेस्टोरेन्ट होगा, आप आना उधर भी.. किसी दिन खाना खाने.. "कहते हुए उसकी आंखे चमक रही थी.. "
हां, "हां जरूर ,.आऊंगा, "
लेकिन नाम क्या रखोगे... अपने ढाबे का "छोटू का ढाबा "
"नही साहब, हमारा नाम छोटू नही है.. "
वो तो यहीं सब लोग बुलाते हैं ढाबे पर ही , शुरू से ही.. "
अच्छा तो फिर नाम क्या है तुम्हारा.. "
"जी, विश्वजीत ..."
"अरे वाह... इतना प्यारा नाम.. "
"इसको तो रोशन होना ही चाहिए.. "
हां साहब, मैं बारहवीं के बाद होटल मैनेजमेंट का कोर्स करूंगा और अपना रेस्टोरेन्ट खोलूंगा.. "
ईश्वर तुम्हारे सपने को पूरा करें.. "
"बस इसी लगन से लगे रहना.. "
छोटू से विश्वजीत बनने का सफर अभी बहुत लम्बा है, घबराना नही, हौसला पस्त मत होने देना, जरूर होगा तुम्हारा सपना पूरा...।
"टेबल से बरतन उठाते हुए भी उसके चेहरे पर गजब का आत्मविश्वास दिख रहा था.. "
और सामने दीवार पर एक स्लोगन लिखा था.. जिस पर लिखा था," पढेगा इंडिया तो बढेगा इंडिया.. "
वो बरतन रखकर बिल ले आया था और मैने उसे टिप में अपना फोन नम्बर लिखकर दिया था कि कोई भी जरूरत हो पढाई में तो मुझे फोन करना.. "
अब मैं चलता हूं.. "
नमस्ते साहब... एक बात बोलूं .."
"हां, बोलो... "
"आज तक ऐसा टिप भी किसी ने नही दिया इस छोटू को .. "
"मैने भी कहां दिया.. छोटू को.. "मैने तो ये टिप आज विश्वजीत को दी है... उसके सपने को दी हैं, तुम फोन जरूर करना.. "
"जी... साहब, जरूर... " कहकर उसने वो नम्बर अपने पर्स में रख लिया और आगे बढा गया, अगली टेबल का आर्डर लेने..!!
और मैने उस स्लोगन को अबकी बार दोबारा मुस्कुराते हुए पढा... "
और खुद से ही बोला.. !
हां.. जरूर पढेगा इंडिया क्योंकि उसे आगे बढना ही है ..!
जयहिंद..!!
©sonnu Lamba
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
🙏🙏 प्रेरणादायक कहानी
थैंक्यू
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