भाग.. एक....
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अपनी विदाई के वक्त स्नेहा फूट फूट कर रो रही थी,अब अपना घर पराया कहलायेगा....मां-पापा रोज नही दिखेगें...बहन - भाई भी ......कैसी रीत है ये.??.
अपनो को पल में पराया कर देती है...और जिनके साथ जा रही है जन्मो- जन्मो के रिश्ते मे बँधकर वे एकदम अजनबी.....!
मन तरह तरह के विचारो से जूझ रहा था और आंखे रह रह कर बरस रही थी...तभी गाडी चल पडी...पापा! अरे पापा तो मिले ही नही...कहां हैं..?
किससे कहे....रूलाई ओर जोरो से फूट पडी...पापा इतने busy हो बेटी की शादी में कि उससे ही नही मिले....तभी गाडी को break लगा...सामने पापा थे....पापा ने सुबकती स्नेहा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा...रो मत बेटा...खुशी - खुशी अपने जीवन की शुरूआत कर....सरल जी बहुत सुलझे हुए है ..तुझे कोई परेशानी नही होगी....ये कहते कहते उनकी आंखे भर आई...!
गाडी फिर चल पडी......स्नेहा उस अनजान सफर पर चल पडी जो जीवन का अहम पडाव कहलाता है....तरह तरह के ख्याल ख्यालो मे आने लगे...कुछ तो देखा ही होगा पापा ने सरल में जो मेरे लिए चुना....जाने कैसा nature होगा ?
और जीवन के प्रति नजरिया क्या होगा.. .?
कैसे होंगें उसके परिवार के सदस्य....कैसा होगा उसका ससुराल .? जो अब उसका घर है...कैसे बनाऊंगी सबके साथ सामंजस्य.....कुछ भी तो नही जानती मै किसी के बारे में....ओर तो ओर अपने पति सरल के बारे मे भी नही..!
स्नेहा के मन मे विचारो का एक समन्दर बन गया था ..और उसमें उमंगो की लहरे हिलोरे ले रही थी, जो अनजाना है उसे जानने की .....जो अनदेखा है उसे देखने की....जाने कब आंसूओ की जगह नींद ने ले ली.....गाडी रूकने के साथ आंखे ऐसे खुली जैसे सब कुछ देख लेना चाहती हो...पर अभी अंधेरा था इसलिए कुछ भी नही देख पायी...!
क्रमश:.....
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
प्रथम भाग पढ़कर दूसरे भाग की रचना पढ़ने की प्रतीक्षा जागृत हो गई। सुंदर रचना
बहुत बहुत धन्यवाद संदीप जी, जल्द ही लिखती हूं
वाह
Thanks varsha ji
Vidai k samay aisi hi feelings aati Hain.... bahut khub
Thanks @soniaa
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