क्या सुचि..? अकेली कहां हो..?
तुम्हें इतने भरेपूरे परिवार में अकेलापन क्यूँ लगता है..?
हां, मीनू..
क्योंकी यहां कभी कोई पिता की तरह ये नही बोलता कि "मैं हूं ना... " तू चिंता मत करना.. कभी भी..।
कभी भी मां की तरह किसी ने नही पूछा.. तूने कुछ खाया, पहले कुछ खा ले.. बेटा, काम बाद में कर लेना..।
कभी बहन की तरह कोई मेरा पक्ष लेकर आगे नही आता, नही बोलता.. जब, मैं अपनी बात नही बोल पाती..।
कभी भाई की तरह कोई अचानक आकर चौंकाता नही, पीछे नही भागता, उदास देखकर गुदगुदाता नही..।
कभी काम करने का मन ना हो तो कह नही सकते कि मेरा मन नही है...।
तबीयत खराब हो तो आराम करने को नही बोलता कोई भी, ना कोई सर पर हाथ फेरता....।
सुचि ऐसा ही होता है ससुराल में, वहां मायके जैसी सहजता नही होती, अब तो देखो कितना बदल गया सब कुछ, पहले तो बहुत अत्याचार भी होते रहे, औरतो पर, कईं तरह के ताने उलाहने और प्रतिबन्ध झेलती आयी हैं वो,
क्या तूने देखा नही.?
खुद की ही दादी, तायी,चाची को, खटते हुए..।
"हां देखा है मीनू ..तभी से मेरा संवेदनशील मन चाहता है, सब कुछ बराबर...क्यूं नही हो जाता..। जब दोनों ही अपने घर है तो एक जैसा सा क्यों नही लगता..।"
वैसे भी ससुराल में आने पर थोडी परवाह, थोडा दुलार मिल जाये तो मन कितना खुश रहता है..।अब देखो ना एक पौधे को भी जब एक जगह से दूसरी जगह लगाते हैं, उसकी थोडा ज्यादा देखभाल करते हैं, जिससे वो दूसरी मिट्टी में जल्दी से जड पकड ले.. कहीं मुरझा ना जाये..। लेकिन लड़कियों के मामले में उल्टा क्यों..?
क्या ये ससुराल वाले नही जानते..।
जानते हैं.. मेरी भोली सहेली और सभी घर किसी का मायका हैं तो किसी की ससुराल ..बदलना तो सबको ही होगा..।
तू चिंता छोड़.. चल उठ थोडा घूमकर आते हैं.. हम मिलकर करेंगें शुरूआत और देखना एक दिन होकर रहेगी दुनियाबराबरीवाली....।।
©®sonnu Lamba
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Nice story 👍
Thanks @Sonia ji
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