नये जूते 👢

संवेदनशील रचना

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Sonnu Lamba
Sonnu Lamba 02 Jun, 2020 | 1 min read

मुझे बहुत जलन हो रही थी रोहन के चमचमाते नये जूते देखकर...! मैं आज घर जाते ही बाबा से कहूंगी कि मुझे भी नये जूते चाहिए तो चाहिए हीं...! अपनी इस जिद को मनवाने के नये नये तरीके सोचते सोचते घर आ गया, मैं मुंह फुलाकर ही घर में घुसी..!

चल बेटा यूनिफार्म चेंज कर ले, मैं खाना लगाती हूं.."

मां.. बाबा कहां है ,मुझे उनसे बात करनी है..!

होंगें यहीं बैठक में... क्या बात है बता तो.. "

बाबा.. बाबा..! 

हां, बेटा.. आ गयी स्कूल से, बाबा ने बिना मेरी ओर देखे ही बोला.. मेरा गुस्सा ओर बढ गया, ऐसा भी कौन सा काम जिसमें इतना मग्न हैं.. मैं चुप देखने लगी ..!

अरे बोल ना.. चुप क्यों हो गयी.. "

अब उन्होने मेरी ओर देखा.. "

कुछ नही.. पिताजी.. "

कुछ तो है, बडी गुस्से में थी, मैं पहचानता हूं तेरी आवाज.. "

वो.. मैं कह रही थी कि आज मुझे अपने जूते चमकाने हैं, पोलिश चाहिए.. . "

नही बेटा.. पोलिश तो नही, मैं बाजार जाऊंगा तो लेता आऊंगा.. "

नही रहने दीजिए.. अपने लिए नये जूते ले आना, क्या रोज रोज इन फटे जूतो को सिलते रहते हैं..। 

©®sonnu Lamba


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