आज वो सलीम चाचा का ठेला कहां गया.. जो पांच रुपये में दो पूडियां देते थे...कहीं दिख नही रहे, भूख भी जोर से लगी है, ये कहते हुए उसने पांच रुपये का सिक्का कस कर अपनी मुट्ठी में भींच लिया..। ओर थोडा आगे चलकर देख लेती हूं... कभी जगह बदल दी हो..!
पांच रुपये का जुगाड करके लाना भी उसके लिए बहुत मुश्किल था.. यूं तो सुबह से शाम तक जाने कितना पैसा वो मांग लेती थी सिग्नल पर ...भीख मांगना ही उसका काम था, जब से होश संभाला तब से खुद को सिग्नेल पर पाया, लेकिन उसके पास एक भी पैसा नही होता...... सारे पैसे तो राका ही छीन लेता..(राका, उस इलाके का गुंडा था,सब उसे दादा कहते ,) और बदले में वो सब बच्चो को देता, पहनने को गंदे से कपडे और एक टाइम का खाना..।
इसलिए वो हर रोज पांच रुपये अलग रखकर, सलीम चाचा के ठेले से ..पूडियां खा लेती दोपहर में..।
ठेले को खोजती खोजती वो काफी आगे निकल गयी और उसने एक शीशे के दरवाजे से अंदर झांका.. खाने के इतनी बढिया बढिया चीजे ..मुंह में पानी आ गया.. भूख भी बहुत तेज लग रही थी, तभी गार्ड ने आकर डांटा.. ए लड़की हट यहां से.. "
क्यूं झांक रही है...अंदर?
अंकल.. क्या अंदर पांच रुपये में कुछ नही मिलेगा खाने को, उसने सिक्का दिखाते हुए पूछा.. "
"नही... "गार्ड ने बेख्याली से कहा.. "
काश.. उसने अंदर झांक कर ही न देखा होता, खाने की इतनी स्वादिष्ट चीजे लेकिन उसकी हद से बाहर... कैसी विडम्बना है, बीच में ये जो पारदर्शी शीशा लगा है, ये कितना गंदला है, जो भूखे बच्चे का चेहरा भी उस पार बैठे लोग नही देख पा रहे हैं, मन मसोस कर वहां से चल दी, लेकिन जाने से पहले एक बार ओर गार्ड से पूछ बैठी..
"अंकल कुछ तो मिलता होगा, पांच रुपये में, इतनी बडी दुकान है.. ""
उसकी मासूमियत पर गार्ड को दया आयी.. "
नही बेटा.. कुछ नही मिलेगा.. "
अंकल,काश ! कुछ मिल जाता ..?, बहुत भूख लगी है.. "
ले तू मेरा ये टिफिन खा ले.. "
और आप क्या खायेंगें, अंकल.. "
मुझे अभी भूख नही है.. गुडिया .." तू खा ले.. "
वो जल्दी जल्दी डब्बा खोल कर खाने लगी और गार्ड का पेट उसे खाते देखकर ही भरता गया ..।
©®sonnu Lamba
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As always the best
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