जब भी मैने मनुष्यों में,
सैंटा को ढूंढना चाहा..
मैं निराश ही हुई..
इतना निराश कि,
मैने हर बार सोचा,
ईश्वर..!
तुम्हारे सिवाय, और कौन है मेरा,
तुम खुद सामने क्यों नही आते,
और ठीक तभी,
कुछ ऐसा घटा कि,
मेरा यकीन ओर पुख्ता हुआ
कि ईश्वर सुनता है, लेकिन तब,
जब केवल उसे ही सुनाया जाये,
इसलिए मेरा सैंटा हमेशा ईश्वर ही रहा..।
आज मैं सोच रही हूंँ कि
ईश्वर खुद कभी सामने तो आया नहीं,
फिर वो जिस रूप में आया,
उसकी कोई पहचान, कोई नाम,
जेहेन में क्यों नहीं ...?
क्योंकि वो आया था हमेशा अलग अलग रूपो में,
उसकी पहचान मनुष्यों तक सिमित नही रही,
वो बादल, बिजली, फूल, पत्ती, किताब,
कलम, कविता, कहानी ,मित्र, शत्रु और
उन लोगो के रूप में भी आया,
जिनसे कोई अपेक्षा ही नहीं की थी,
और इस तरह एक बार और पुख्ता हुआ कि
वो सर्वत्र है, मेरे भीतर और मेरी दृष्टि में भी,
और फिर मैनें जीवन को नयी दृष्टि से देखा..
क्यों न मैं किसी के लिए सेंटा बनू़ँ...
मानवता पर लोगों का विश्वास बढा़ऊँ,
क्या है ऐसा जो मैं इस विश्व को दे पाऊँ,
प्रेम, करूणा और सदभावना ..
यही रहेगी मेरी प्रार्थना, यही उपहार,
जरूरत है इनकी सबको बारम्बार..!!
©®sonnu Lamba
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Very nice
Thanks
अनुपम
धन्यवाद संदीप
बहुत प्यारा लिखा सोनू आपने 👏👏
Bhut bhut dhanyvaad ji
kya baat he
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