भरी दोपहर में घर के पिछवाडे दीवार की ओट में बैठी वो कुछ तुडे मुडे पन्नो को देख रही थी....मैने उसे आवाज देकर बुलाया..इधर आओ"
बुरी तरह घबरा गयी पहले तो..
मैने कहा ,घबराओ मत.."
छोटे छोटे कदम रखती हुई ...आ गयी ..
क्या नाम है..तुम्हारा "
कजरी..'"
मेमसाहब...
मेमसाहब मत कहो...दीदी कहो...
ये सुनते ही वो कुछ सहज हो गयी..
(यही कोई 6 ..7 बरस की रही होगी...पुराना सा फ्राक पहने...
बाल उलझे हुए..रंग सांवला...धूल -मिट्टी में सनी हुई सी...और काली बडी आंख जुगनू सी चमकती हुई।)
क्या करती हो..'
कचरा बीनती हूं दीदी.."
यहां क्यों बैठी थी..'
कचरे से ये किताब के कुछ पन्ने मिले..इन्हे देख रही थी कि क्या लिखा होगा इनमें.. "
पढना जानती हो.."
नही दीदी..कैसे जानेंगें..? कोई स्कूल नही जाने देता.."
कहां रहती हो.."
वो उधर ..सडक पार..झुग्गी झोपडी वाली बस्ती में.."
मां क्या करती है.."
वो भी कचरा बीनती है.."
घर का काम करती है.."
और बापू...क्या करते हैं तुम्हारे.."
कुछ नही... दीदी"(मायूसी से बोली)
मतलब कोई काम नही...फिर पूरे दिन क्या करता है ..तुम्हारा बापू"
पडा रहता है ...दारू पीकर.."
तुम्हारी मां कुछ नही कहती..."
कहती है दीदी...बहुत झगडा होता..मार भी पडती मां को..."
मुझे बिल्कुल अच्छा नी लगता..."(कहते कहते एक आंसू उसकी आंख से लुढक गया...)
तुमने कभी कुछ कहा अपने बापू से ..."
कहा था दीदी"
क्या?..
मैने कहा...बापू तुम भी कुछ काम करो... मुझे कचरा चुगना अच्छा नी लगता..बहुत गंदगी होती है..बास भी आती है.."
तो क्या बोला.."
बोला तू..कल से स्टेशन जा ...कुछ बच्चे जाते उधर से..भीख मांग कर ले आना..."
फिर.."
मैं गई ...दीदी..एक दिन.."
फिर.."
पैसे भी मिले..लेकिन उधर बहुत हिकारत से देखे लोग..
मां ..बाप को भी गालियां देते थे..
ओर भी गंदी बाते सुनी मैने...
मैं फिर नही गयी दीदी...मैने मां से कह दिया...मैं वहां नी जाऊंगी तेरे साथ ही चलूंगी कूडा बीनने..."
(मैं सोच में पड गयी ...उसकी बाते झकझोर गयी कहीं गहरे..)
दीदी..."
उसकी आवाज से मैं वर्तमान में लौटी...
हां....कजरी.."
दीदी ...आप ही कुछ बता दो ..मैं क्या करूं कि बापू कुछ काम करें...ओ लक्ष्मी के बापू के जैसे.."
और मैं स्कूल भी जा पाऊं....
(उसने गहरी और उम्मीद भरी नजर से आंखे बडी करते हुए मुझे देखा...)
अब मैं भी थोडा सहम गई...समाधान
मैंने अभी तक कुछ सोचा ही नही...
मैने उसकी मासूम आंखो में देखा और अनायास ही मुंह से निकला ...कल से कचरा उठाने से पहले मेरे पास आना यहीं...
मैं तुझे पढना सीखाऊंगी..."
सच."..(उसकी आंखे चमकने लगी और होंठ आश्चर्य से बंद हो गये)
अरे !..क्या सोचने लगी ,अभी तू इन किताब के पन्नो को इसी चाह में तो पलट रही थी ना.."
जी दीदी...लेकिन मां..."
अपनी मां से मेरी बात करा देना...मैं समझा दूंगी..उसको.."
अच्छा दीदी.."नमस्ते
उसने हाथ जोड दिये...
(और वो मुस्कुराते हुए तेज तेज कदमों से चली गई...)
कजरी ...आना जरूर पढने..., मैने ऊंचे स्वर मे बोला...
'"जी दीदी."..बहुत ही चहकती आवाज आयी उसकी..."
और मैने भी गहरी सांस ली...और मुस्कान खुद ब खुद मेरे होठो पे आ गयी..।।
©®sonnu lamba
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