ख्वाब
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मन के कोने में रखी वो तडप.. वो छटपटाहट जो मर मिटने को आमदा हो ....पल पल, सोते.. जागते एक ही ख्वाब आंखो में सजता रहे.. पनपता रहे... मैं मर जाऊं.. मैं मिट जाऊं लेकिन अपनी भारत मां का सिर ना झुकने पाये.... वो एहसास, वो छटपटाहट जब शब्दों में उतरती है तो..... कुछ इस तरह -
ए मेरी ज़मीं अफसोस नहीं
जो तेरे लिए सौ दर्द सहे..
महफूज रहे तेरी आन सदा
चाहे जान ये मेरी रहे न रहे..!
प्रेम
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प्रेम में भी स्व कहां... खुद को ही तो खोना होता है, पल पल महबूब की सलामती, उसकी हंसी खुशी की परवाह और इतनी परवाह की खून का एक एक कतरा लुटा देने का जिस पर जी चाहे.. वो मातृ भूमि से बढकर कौन है, भला... कोई हो भी नही सकता...
ऐ मेरी ज़मीं महबूब मेरी
मेरी नस नस में तेरा इश्क बहे
फीका ना पड़े कभी रंग तेरा
जिस्म से निकल के खून कहे...।
चाहतें
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चाहते यूं आसमान हो जाये... उठते, बैठते ,सोते ,जागते, उनके पूरा होने की तमन्नाएं ,उनको पूरा करने का जुनून सिर चढ़कर बोलता रहे... हर पल अपनी भावना को कह देने का जी चाहे.. जी चाहे कि बता दें हर शय को क्या हैं हमारी चाहते... हम क्या चाहते हैं...! इतनी विशाल चाहतें ,और उन्हें इतनी सी कह देना ,कितनी उदारता होती है उन मनो में जहां ये पवित्र चाहते जन्म लेती हैं...
तेरी मिट्टी में मिल जावां
गुल बनके मैं खिल जावां
इतनी सी है दिल की आरजू
तेरी नदियों में बह जावां
तेरे खेतों में लहरावां
इतनी सी है दिल की आरजू....!
दुआएं...
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मन की जमीन पर खिलता छोटा सा एक फूल जो अपनी सुगंध वहां तक फैलाना चाहे, जहां, जिन गलियों में वो पला बढा.. जहां की धूल मिट्टी में लोट लोट कर वो हुआ बडा. ..जहां वो अपनी मातृभूमि के प्रेम में पडा ..दुआ उन खेत खलिहानो के लिए, उन गांव मौहल्लो के लिए. ..
सरसों से भरे खलिहान मेरे
जहाँ झूम के भांगड़ा पा न सका
आबाद रहे वो गाँव मेरा
जहाँ लौट के बापस जा न सका...!
कुर्बानी
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सर पर कफन बांध के मातृभूमि की सेवा में खडे वीरो की कुर्बानियां ना कभी व्यर्थ गयी और ना ही कभी उन्होने उस पर अफसोस मनाया... हंसते हंसते, मर मिटे ,गाते गाते ..गीत वही -
ओ वतना वे मेरे वतना वे
तेरा मेरा प्यार निराला था..
कुर्बान हुआ तेरी अस्मत पे
मैं कितना नसीबों वाला था..!
जिंदगी..
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जिंदगी, मौत के सामने कब हार मानी है, उसे तो हर हाल में चलना है, मुस्कुराना है... जाने वाले के गम में तुझे ठहर नही जाना है... मेरी आखिरी आरजू... तुझे हंसने की सौगंध है , जाते जाते ये मंत्र फूंक जाना -
ओ हीर मेरी तू हंसती रहे..
तेरी आँख घड़ी भर नम ना हो
मैं मरता था जिस मुखड़े पे
कभी उसका उजाला कम ना हो..!
सांत्वना -
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उस माई को, जिसको शायद ही सब्र आये कभी, अपने प्यारे लाल के जाने का पत्थर जो सीने पर रखकर बैठ जाती है. .आखिरी प्रयास उसको ढाढस देने का. ...ये कैसे चूक जाये... एक माई पर मर मिटे. .दूसरी को ये कह जाये..
जो भी सुने वो खुद को कैसे रोक पाये. .इतना बड़प्पन ,उस मां से ही मिला.. उसी को वो याद दिलाये -
ओ माई मेरी क्या फिकर तुझे
क्यूँ आँख से दरिया बहता है..
तू कहती थी तेरा चाँद हूँ मैं.
और चाँद हमेशा रहता है...!।
केसरी फिल्म का ये गीत, गीत नही है एक ताबीर है, वतन पर मर मिटने वालो के एहसासो की...!
गीतकार मनोजमुन्तिशर ने मातृभूमि पर मर मिटने के प्रेम को इतने खूबसूरत शब्दो में पिरोया है कि शब्द शब्द बोल उठा है.. आर्को के संगीत में गजब की छटपटाहट है, सब कुछ लुटा देने का जज्बा और आवाज जो मन के कोने कोने तक जाती है ओर फिर उसकी इको आंखों से बह जाती है.. वो आवाज है बीप्राक की..!
ये गीत उन हजारो लाखो मनो की भावनाओ का वाहक है,जो अपने वतन, अपनी मिट्टी से प्रेम करते हैंं ..उस पर अपना सर्वस्व लुटाना चाहते हैं... मानवता की सेवा में दिन रात लगे होते हैं ...! ये इस सदी का कालजयी गीत है जो सदा.. सर्वदा गूंजता रहेगा...! जयहिंद...!
(कालजयीगीत2)
©Sonnu Lamba
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Beautifully penned and expressed it to the core...
Beautifully expressed
Thanks virdhi and thanks sonia... Ji Thank you so much 🌺🌺🌺🌺
बहुत ही उम्दा लिखा है सोनू जी आपने👌👌 मैं तो फैन हो गई आपकी
धन्यवाद मनीषा जी
Wah Sonu bahut shandar 👌👏💕
Thanks shubha
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