बालकनी में गमलो को ठीक करती दमयंती जी एक एक पौधे के साथ समय व्यतीत कर रही थी, कभी कोई सूखी डाली हटाती, नलाती, सहलाती, पानी देती और उन्हें से बाते करती जाती.. "
तभी रमाकांत जी ने पुकारा...
अरि भाग्यवान कहां हो..!
और कोई जबाब ना पाकर वहीं चले आये.. और अपनी ही धुन में मगन दमयंती जी के जूडे में फूल लगा दिया..!
अरे ये क्या.. अब इस उम्र में.. जब उम्र थी इन सबकी, तब तो आपके पास वक्त ही नही था.. "
वे गहरी सांस लेकर बोली..!
हां, कहती तो सच हो.. जीवन की आपाधापी में कभी ठहर कर ही नही देखा.. अब गया वक्त तो लौट नही सकता, लेकिन जो है.. उसे क्यों गंवायें.. "
"जिंदगी की सांझ ही सही.. खूबसूरत तो है.. "
हां.. हां, आप रूकिए यहीं.. मैं चाय लाती हूं.. "
तब तक मेरा बचा हुआ काम किजीए.. कुछ पौधे बचे हैं अभी, संवारने को..।
हां.. क्यों नही, हम पूछते हैं आज इनसे ,तुमसे क्या बतलाते हैं, ये सब.. हमारी पीठ पीछे..!
मुस्कान की एक पतली रेखा अब दोनो के होंठो पर थी..।
दमयंती जी.. मुस्कुराती हुई, किचेन मे चली गयी और सोचने लगी, अब ये कितना बदल गये हैं, कुछ सालो पहले कैसे काट कर खाने को दौड़ते थे, जिम्मेदारियां भी कम नही थी सिर पर... अब बच्चो के शादी ब्याह भी हो गये, सब अपने अपने काम में व्यस्त हैं, ऐसे में पति पत्नी ही एक दूसरे का सहारा रह जाते हैं, बस साथ बना रहे..!
चाय में उबाल आ गया था, दो कप में छानकर ,चाय लेकर बालकनी में पहुंची तो रमाकांत जी एक किताब लेकर कुर्सी पर बैठे थे. ."
हो गयी पौधो से बातचीत. ."
हां, और उन्होने कहा है कि तुम शायरी की शौकीन हो..
तो आज तुम्हें हम शेर सुनाते हैं... अर्ज किया है..
"कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए
तुम्हारे नाम की इक ख़ूब-सूरत शाम हो जाए..."!
वाह. .वाह, बहुत खूब.. चाय पिजीए ना, ठंडी हो रही है.. ..!
©®sonu Lamba
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
कितना खूबसूरत लिखा है
बहुत बहुत धन्यवाद सुषमा 😍😍😍
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