चिट्ठी ...खत...पत्र ..इसका लुत्फ जितना मेरे समकक्ष लोगो ने लिया है...शायद ही उसके बाद के लोगो ने लिया हो और नाइंनीटीज में बोर्न लोगो ने तो बिल्कुल ही नही...उन्हे ये सब बोर लगने लगा था ...कईं तरह के कम्यूनिकेशन में प्रावधान जो होने लगे थे ..जो एक खत के आने जाने से कहीं तेज थे ।
खैर हम उस जमाने चलते हैं जब खतो के साथ दिल की धडकने बढती थी और घटती भी थी...बंद भी हो जाती थी कभी कभी...खत जो डाकिया लाता था ..वो भी स्पेशल हो जाता था... यानि डाकिया का इंतजार बेसब्री से होता ..उसके आने का समय याद रहता...जन्मदिन या किसी खास दिन मिलने वाले शुभकामना संदेश भी डाक की मेहरबानी से ही खुद तक पहुंचते थे।
मुझे याद हैं जब हम घर से दूर हास्टल गये ...खत ही एकमात्र सहारा रहे..स्वजनो से बातचीत का...उन दिनो अगर लगातार कोई ना कोई खत मिलता रहता तो ...बहुत स्पेशल फील आता था...सहेलियां भी जैलेस हो जाती थी ।
तेरी तो रोज ही चिट्ठी आती हैं...
हमें तो कोई लिखता ही नहीं
"अच्छा दिखा ना ..किसकी चिट्ठी है ..."
और इस तरह हमने एक दूसरे की चिट्ठियां भी खूब पढी...और खूब लिखे उन सब खतो के जबाब।
सिलसिले कभी यूं भी बने थे
कि हम करते थे इंतजार डाकिए का ...
कि उनका खत आयेगा..
और जब खत नही आता था..
तो पढ लेते थे कोई पुराना खत ...
जितनी बार पढे उतनी बार
जिये थे वो पुराने खत..
दिल को अजीज जो थे..
वो शब्दो के पिटारे...
जाने क्या बात थी...
प्यार से लबालब रहते थे
वो खत..तुम्हारे....
दूरियों मे भी दिल से
दिल मिले थे ....
सिलसिले कभी यूं भी चले थे..।
और ज्यादा रस पाने को फर्जियां चिट्ठियां भी लिखी एक दूसरे के नाम ,और रूठ जाने पर मनाने के लिए भी बहुत खत लिखें , बिल्कुल सामने बैठ के ही । खत लिखना ,उनका जबाब पाना और फिर उन्हे संभालकर भी रखना और फिर अचानक से किसी रोज उनका दोबारा सामने पड जाना और दोबारा पढे जाना , कभी गुदगुदा जाता है और कभी आंखे नम कर जाता है..!
☺ यादों के जादुई पिटारें हैं खत...☺
और जो खत कोई देख ना लें के डर से नष्ट कर दिये जाते थे ..वो तो सपनो में भी आते रहे ,
चिट्ठियों और खतो के गाने भी कम हिट नही थे ...तब,
फूल तुम्हे भेजा है खत में... फूल नही मेरा दिल है...
(ये भी बहुत डेयरिंग एक्ट था सच्ची...वो भी डाक से भेजना)
वो फूल दिल था या नही ...लेकिन भेजने से पहले उसे चूमा जरूर जाता होगा ।
खत की बातें हो और लिखावट की बातें ना हो ...ऐसा हो ही नही सकता ...वो लिखावटें आंखो मे गहरी उतरी होती थी गोया लिखावटो से ही पता चल जाता कि किसने लिखा है...।
और अब इस कीबोर्ड के युग में अचानक सबकी लिखावटें एक सी हो गई है...रोमांच खत्म । अभी भी लिखे जाते हैं खुले खत सोशल मिडिया में लेकिन किसी भी खुले खत में वो बात नही जो उन बंद लिफाफो में थी..।
@सोनू
Sonnu Lamba
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Bahut pyari rachna❤️❤️
थैंक्यू जी 🌹🌹
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