Sonnu Lamba
Sonnu Lamba 28 Feb, 2021
दौड
मैं एकदम पीछे खडा था, सब दौडे जा रहे थे और मैं ट्रैक से हटकर किनारें आ गया, और देखनें लगा उन सब चेहरों को जो दौड में शामिल थे, अजीब सी थकान, बैचेनीं और हार ना जाएं हम, वाली असुरक्षा साफ दिख रही थी, फिर भी बेतहाशा दौड रहे थे, कोई भी ठहरकर सुस्ताना नहीं चाहता था, और मैं अलग बैठा, गुनगुना रहा था, सुस्ता रहा था, क्या मैने हार मान ली थी? नहीं मैं हार जीत के डर से ऊबर चुका था, मैंने जिंदगी की दौड में से जिंदगी को चुन लिया था..!!

Paperwiff

by sonnulamba

28 Feb, 2021

जीवन

Comments

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  • Namrata Pandey · 3 years ago last edited 3 years ago

    इंसान जीवन भर दौड़ता है और अंत में हाथ कुछ नहीं लगता , बहुत सुंदर दार्शनिक विचार

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