"सुनती हो, आज तुमने वो गरमा गरम भुट्टो की फरमाईश नहीं की? हमेशा तो कैसे इस रिमझिम बरसात को देखकर तुम्हारा मन मचल उठता था। कितनी फुर्ती से तुम पकौड़े बनाती थी और भुट्टो की फरमाइश कर देती थी। इस बार क्या हुआ तुम्हें?"
"कुछ नहीं जी, अब ये सब बचपना करने की उम्र नहीं रही। पहले सड़क किनारे मकान था, आप तुरंत बाज़ार से ला देते थे। अब इस उम्र में कच्चे पक्के रास्तों पर कहाँ भटकते फिरेंगे आप।"
"अरे! उम्र बढ़ गई तो क्या? दिल को बच्चा ही रहने दो। जीवन को पूरी ऊर्जा और उमंग से जीयो।
तुम्हें भी यही लगता है क्या कि बुजुर्ग होने के बाद बेचारे, बेबस और लाचार बने रहना बहुत जरूरी है? उम्र बढ़ने के साथ अपने शौक और पसंद को गंगा में प्रवाहित करना किसी धर्म ग्रंथ में लिखा है क्या!
देखो सरिता! वृद्धावस्था एक सच है, इसे खुले दिल से स्वीकार करो। इसके लिए खुद को बदलने की जरूरत नहीं। जैसे बचपन और जवानी को पूरे जोश और उमंग से जिया है वैसे ही इस बुढ़ापे को भी पूरी ऊर्जा से जियेंगे हम। ना बच्चों के पास समय न होने का रोना रोयेंगे, ना ही जवानी को याद करके आँसू बहाएंगे। जब तक हमारा साथ है, दिल को बच्चा बना रहने दो। जब तक मैं हूँ, अपनी फरमाइशें करना कभी बंद मत करना। और हाँ भुट्टे लाने के बाद पकौड़े भी आज मैं ही बनाऊँगा और अपने हाथों से खिलाउंगा भी।"आँख दबाते हुए किशन ने कहा।
और दोनों की हँसी वातावरण में गूँज उठी। इधर सरिता जी पकौड़ों की तैयारी करने लगी और उधर वो बुजुर्ग जान गीले कच्चे रास्तों को पार करते हुए अपनी प्रियतमा की फरमाईश पूरी करने निकल पड़े।
सोनिया
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