जिले की नयी कलेक्टर सांवरी का सम्मान समारोह चल रहा था , 'सांवरी, जैसा नाम वैसा ही रंग रूप'। महोदया को मंच पर अपनी सफलता पर दो शब्द कहने को आमंत्रित किया गया। आसमानी रंग की सूती साड़ी और छोटी सी लाल बिंदिया लगाए सांवरी अपने पद को सुशोभित कर रही थी। धीमे कदमों से मंच पर पहुँच कर उन्होंने बोलना शुरू किया...
"मैं अपनी सफलता का श्रेय अपने पति वीर प्रताप को देना चाहती हूँ। यूँ तो जन्म मुझे माता पिता ने दिया लेकिन हमेशा कमतर ही समझा, कभी अपने बेटे से तो कभी गोरी रंगत वाली मेरी बहन से। मैं पढ़ना चाहती थी, आगे बढ़ना चाहती थी। मुझमें कुछ कर गुजरने का जज़्बा और हुनर होने के बाद भी सारी संभावनाओं को किनारे करते हुए मेरे माता पिता ने मुझे ब्याह कर अपनी जिम्मेदारी से हाथ धोना उचित समझा। जब वीर ने विवाह प्रस्ताव भिजवाया मैं स्नातक कर रही थी। मेरे माता पिता को डर था कि ऐसे रूप रंग में भला कौन मुझे पसंद करेगा? जब लड़के की तरफ से रिश्ता आया तो वे ठुकरा नहीं सके और उन्होने उड़ान भरने से पहले ही मेरे पंख कतर कर मेरा विवाह सुनिश्चित कर दिया।
मेरी नेत्रों ने सपनो को तिलांजलि दे दी और गृहस्थी को ही अपना भाग्य समझ लिया। जिस पिता ने जन्म दिया जब उसने ही मेरा मर्म नहीं समझा तो किसी और से उम्मीद करना तो अब व्यर्थ ही था।
अभी भी नियति को कुछ और ही मंजूर था। मेरे पति वीर को मेरे सांवले रंग के अतिरिक्त मेरी योग्यता भी दिखाई देने लगी ।धीरे धीरे उन्हें समझ आया कि मुझमें अपार संभावनाएँ हैं। एक शादीशुदा महिला होने के बाद भी मैंने अगर अपनी पढ़ाई को फिर से शुरू किया तो इसका पूरा श्रेय मेरे पति को ही है। ससुराल में तमाम विरोध, तानों और उलाहनों को सहने के बाद भी वो दृढ़ता से मेरे लिए खड़े रहे। इन्होने गृहस्थी की सारी जिम्मेदारियाँ खुद उठाते हुए मुझे सिर्फ अपने लक्ष्य पर केंद्रित रहने को प्रेरित किया।वीर ने ही मुझे समझाया कि दूसरों के जीवन में रंग भरने का अर्थ यह नहीं कि आप बेरंग जीवन जिएं, तुम #जियो अपने सपने। वीर का यही मानना था हर व्यक्ति को अपने हिस्से के रंगों को साथ लेकर चलना चाहिए। वीर का साथ मिला तो सपनों के आसमान की दूरी कम लगने लगी, या यूँ कहिए वीर ही उस आसमां तक पहुँचने की मेरी सीढी है। आज आप सबको ये सब बताने का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि बेटियों को उनके रंग रूप के आधार पर नहीं उनकी योग्यता के आधार पर देखिए।सबसे पहले उन्हें त्याग की मूर्ति नहीं एक इंसान के रूप में देखिए, जिसके अपने कुछ सपने हो सकते हैं, पसंद नापसंद हो सकती है। उनके सपने पूरे करने में उनका सहयोग कीजिए। महिलाओं के स्वतंत्र अस्तित्व को स्वीकार कीजिए! क्या पता कितनी ही सांवरी अपने सपनों के आसमान तक पहुँच जाएँ।कल तक जो लोग मुझे उलाहने देते थे आज मेरी तारीफ में कसीदे पढ़ते हैं। समाज की परवाह मत कीजिए! उगते सूरज को सभी नमस्कार करते हैं।
कलेक्टर साहिबा के भाषण के बाद पूरा हॉल तालियों से गूँज रहा था। वीर सबसे आगे सांवरी की बेटी को गोद में उठाए, आँखों में आँसू लिए, खड़े होकर तालियाँ बजा रहे थे। आँसू तो सांवरी के माता पिता की आँखो में भी थे लेकिन वो खुशी से ज्यादा पश्चाताप के आँसू थे।
सोनिया सैनी
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