बड़े भैया की शादी के बाद से ही पिताजी और माँ ऊपर के कमरे में सोने के लिए जाने लगे थे. नीचे दो कमरे बने थे जिनमें से अंदर वाला कमरा भैया भाभी का था और दूसरा गली से लगते हुए एक बैठक थी जिसमें रात्रि में रोमी डेरा डाल लेता था. सर्दियों की हाड़ कंपाती ठंडी रात थी। रोमी काफी देर से सोने का प्रयास कर रहा था किन्तु भैया भाभी के कमरे से आती खुसुर - फुसुर ने जैसे उसकी नींद भगा रखी थी। कभी उनकी हँसी की आवाजें सुनाई पड़ रही थी तो कभी चुहलबाजी की। वह करवटें बदल बदल कर सोने का असफल प्रयास कर रहा था।
भाभी की खनकती चूड़ियाँ उसके हृदय में भी होने वाली पत्नी की कल्पना को साकार करने लगी थीं।किसी तरह नींद आई ही थी कि तकरीबन एक घंटे के बाद रोमी को एहसास हुआ जैसे खिड़की के पास कुछ आहट हो रही है।कभी पायल की रुनझुन सुनाई पड़ रही थी तो कभी चूड़ियों की खन खनाहट। वह नींद की गिरफ्त में आ चुका था इसलिए उसने नजरअंदाज़ कर दिया।वैसे भी इतनी सर्दी में आधी रात को कौन गली में घूमेगा!
थोड़ी देर बाद फिर से उसे लगा जैसे कोई बाहर खड़ा हो। चूड़ियों की खनक एक ओर बार सुनाई पड़ने पर उसको थोड़ा खटका हुआ। "अगर वास्तव में कोई बाहर है तो दरवाजा क्यूँ नहीं खटखटा रहा। रोमी ने खिड़की के पास कान लगाकर सुनने की कोशिश की तो उसे अपने कानों में किसी की हँसी गूंजती सी सुनाई पड़ी। रोमी के दिल की धड़कने बढ़ने लगी। उसने हिम्मत करके खिड़की खोल कर देखा तो उसे महसूस हुआ जैसे एक काला लम्बा सा साया धीरे धीरे उसके घर से दूर जा रहा हो। गली में लगी स्ट्रीट लाइट की रोशनी में उसने स्पष्ट रूप से साये को दूर जाते हुए देखा। रोमी ने आँखें मलकर फिर से देखने का प्रयास किया! एक अंजान साया... धीरे धीरे गली के दूसरे छोर की ओर बढ़ रहा था। डर से उसके पसीने छूटने लगे। रोमी ने खिड़की को बंद कर दिया। कम्बल में मुँह किए वह रात भर सिकुड़ कर पड़ा रहा।
अगली सुबह बड़ी मनहूस खबर लेकर आई थी। सामने रहने वाली रीना भाभी, जो पेट से थीं कल रात ही प्रसव के दौरान उनकी मृत्यु हो गई थी जबकि बच्चा सही सलामत था।
घर का माहौल गमगीन हो गया। अगले कुछ दिन गली में काफी चहल पहल रही।दो सप्ताह बीत गए थे। फिर से आधी रात के बाद रोमी को पायल की खनक सुनाई पड़ने लगी।रोमी का दिल जोरों से धड़कने लगा था। धीरे धीरे पायल की आवाज थोड़ी दूर जाती हुई प्रतीत होने लगी। अपने शक को पुख्ता करने के लिए रोमी ने खिड़की को हल्का सा खोल कर झाँक कर देखा! बाहर फिर से एक महिला का साया लहरा रहा था। साया एक पल को ठहरा और फिर वापिस रोमी के घर की ओर आने लगा। उसे सिहरन महसूस होने लगी। हाथों में कंपकंपी हो रही थी।
सूखते हलक से उसने अपनी माँ को पुकारा किन्तु आवाज उसके हलक से बाहर ही नहीं निकल रही थी । वह बेसुध होकर बिस्तर से नीचे उतरा और सीढ़ियों की ओर भागने लगा। पहली सीढ़ी पर पाँव रखा ही था कि उसे एक साया सीढ़ियों पर दिखाई पड़ने लगा। वह चीख कर वहीं बेहोश हो गया। जब उसे होश आया तो सब लोग उसके आसपास थे।रोमी को तेज़ बुखार था। माँ ने बताया कि वह रात भर बडबड़ाता रहा है। रात को याद करके उसे फिर से दहशत होने लगी थी। रात को देखा हुआ सारा मंजर एक फ़िल्म की भाँति उसकी आँखों के आगे घूमने लगा।
"रोमी बोल बेटा, क्या हुआ तुझे तू सीढ़ियों पर क्या कर रहा था?" माँ ने रोमी के सर पर हाथ फेरते हुए पूछा।
"वो माँ....!" वह माँ को सारी घटना बताना चाहता था, लेकिन जैसे ही उसने माँ की ओर गर्दन घुमाई, रीना भाभी आँखों के सामने दिखाई देने लगी। वे माँ के ठीक पीछे खड़ी हुई, अपनी भाव शून्य सी आँखों से एक टक रोमी को घूर रही थी। उन्होने गुस्से में रोमी की ओर देखा और न में गर्दन हिलाई।
"रीना भाभी...!!" इतना कहते ही रोमी को फिर से चक्कर आ गए।
घर में जैसे कोहराम मच गया। कल रात तक एकदम हट्टा कट्टा जवान लड़का आज बात बात पर बेहोश हुआ जा रहा था। तुरंत डॉक्टर बुलाया गया, किंतु रोमी की तबीयत में सुधार नहीं हो रहा था।
डर ने उसके भीतर बहुत गहरे तक अपनी जड़ें जमा ली थी। दवाओं के असर से उसको किसी तरह होश आता भी तो आंखों के सामने एक मृत महिला को हर समय पाकर उसके होश वापिस गुम होने लगते।
रोमी अक्सर अपनी उँगली से इशारा करता, मुँह से भी कहने का प्रयास करता लेकिन उसकी जुबान पर ताला जड़ दिया गया हो मानो।
माँ को अंदेशा हो गया था कि जरूर यह कोई बला है जो रोमी के पीछे लग गई है।एक रोज उन्होने मंदिर जाकर पुजारी जी से सारी व्यथा कह सुनाई। पुजारी जी ने रोमी की माता जी को धैर्य से काम लेने की सलाह दी और अगले दिन उनके घर आने का वादा किया।
पुजारी जी अगले दिन अपने साथ एक जटाओं वाले बाबा को लेकर घर के भीतर दाखिल हुए।
"माताजी ये सिद्ध बाबा हैं, इन्होने श्मशान में रहकर सिद्धियाँ प्राप्त की हैं, अवश्य ही यह आपके बेटे को बाधा मुक्त करने में मदद करेंगे।"
बाबा ने कुछ देर के लिए अपनी आँखें बंद की और फिर इशारे से प्रश्न किया, "कहाँ है रोमी?"
"रोमी भीतर के कमरे में आराम कर रहा है। "बहू ने जवाब दिया।
बाबा ने कमरे का द्वार खोल कर देखा तो रोमी दीवार की ओर मुँह किए किसी से बातें कर रहा था।जटा वाले बाबा ने कमरे में थोड़ा जल छिड़कने के बाद रोमी की माताजी को बुलाकर कहा, "आपके बेटे के आसपास एक नहीं दो सायों का असर है। "
घर में सबके चेहरे यह बात सुनकर सफेद पड गये।
"बाबा कोई उपाय करिये, मेरे बच्चे ने क्या बिगाड़ा है किसी का? उसके पीछे ही क्यूँ?" माताजी सिसकने लगी।
"आप फिक्र न करें, अब ये बात तो वो साया ही बताएगा कि रोमी के पीछे क्यूँ पड़ा है। "
जटा वाले बाबा ने पूजन सामग्री घर में बिछा कर अपने गुरु का नाम लिया और बाधा रहित करने की विधि प्रारंभ कर दी।
" बचा लो...! मुझे ले जायेंगी....! "रोमी चीख रहा था।
"कोई मत जाना उसके पास, वर्ना अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा। ये सब उसी रूह का फैलाया जाल है। "
धीरे धीरे घर में धुआँ बढ़ता जा रहा था। सभी लोग खांसते खांसते परेशान हो गए थे।
"नहीं जाऊँगी... इसको छोड़ कर नहीं जाऊँगी... लेकर जाऊँगी इसको! "रोमी औरत की आवाज में बोला।
" बोल क्यूँ पीछे पड़ी है इसके...! "
" ये खुद मुझ पर मोहित हुआ... मैं इसके पीछे नहीं पड़ी! इसने मुझे पलट कर देखा... इसलिए मैं इसके साथ आ गई!"
"क्यूँ घूम रही थी तू यहाँ, ये तेरा ठिकाना नहीं है। बोल कहाँ से आई है? किसके लिए भटक रही है? "
" मैं तो अपना शिकार लेने आई थी। मैं बस प्रसव के समय कमजोर हो चुके शरीर पर हावी होती हूँ... और ले जाती हूँ अपने साथ जच्चा बच्चा को। "
" है कौन तू...? "
" मेरी मौत भी बच्चे को जन्म देते समय हो गई थी। मेरी ममता ने मुझे परलोक नहीं जाने दिया और बिन शरीर के मैं इस लोक में न रह सकी, इसलिए भटक रही हूँ दोनों लोकों के बीच में। मुझे सुगंध आती है गर्भवती महिलाओं के शरीर से और फिर मैं खींची चली आती हूँ। उस रात भी मैं रीना को लेने के लिए यहाँ भटक रही थी तभी इस लड़के ने मुझे पलट कर देख लिया और मैं इसके साथ आ गई। "
" तेरे साथ दूसरा साया कौन सा है? "
" दूसरा साया रीना का है, उसकी आत्मा उसके शिशु के मोह में बंधी है। उसके परिवार के सदस्यों ने उसकी तेरहवीं नहीं की है, इसलिए वह बेचैन होकर यहाँ वहाँ भटक रही है। "
" अब तुझे जाना होगा, इस बच्चे को छोड़ दे मैं तुझे कोई कष्ट नहीं दूँगा। वर्ना मेरी शक्तियों से तू परिचित है। "बाबा ने क्रोध से कहा।
" ठीक है...! जाती हूँ। "
बाबा ने एक ताबीज बनाकर रोमी के गले में बांध दिया और घर में अगले 11 दिन तक हवन करने की सलाह दी।
रीना की आत्मा की शांति के लिए उसकी तेरहवीं करा कर तर्पण करा दिया गया।
रोमी की तबीयत में सुधार होने लगा था।वह धीरे धीरे सामान्य हो रहा था। इस बात को बीते एक साल हो गया है। आज रोमी की भाभी लजाते हुए माताजी को दादी बनने की खबर सुना रही है। इधर भाभी के कमरे के बाहर एक गहरा काला साया लहरा रहा है। फिर वही पायल की रुनझुन, वही चूड़ियों की खनक और बिन शरीर का वही काला साया! रोमी साये को देखकर, पसीने से तर बतर होकर नीचे गिर पड़ा है।
सोनिया निशांत कुशवाहा
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