रात के तीन बजे थे, मकान नंबर चार सौ तीन से चीत्कार सुनाई पड़ रही थी। 403 में रहने वाले 17 साल के विभु का आज शाम से ही कोई अता पता नहीं था।और अब ये चीख पुकार किसी अनहोनी की तरफ इशारा कर रही थी।
मैंने झींझोड़ कर अपने साथ सोते हुए छोटे भाई को उठाया और फिर हम दोनों बाहर की ओर दौड़ पड़े।
बाहर आंटी छाती पीट पीट कर दहाड़े मार रही थी। उनके पास खड़े घर के बाकी सदस्य आंटी को झूठा हौसला देने की कोशिश कर रहे थे।
उनके घर के बाहर बिखरा खून और किसी को घसीटने के निशान साफ दिखाई पड़ रहे थे। पास ही में विभु के कपड़े नजर आ रहे थे, किंतु विभु नदारद था! मामला काफी हद तक मेरी समझ में आ गया था फिर भी पास ही खड़े एक आदमी से मैंने पूरा घटनाक्रम जानने का प्रयास किया।
"भैया शाम को 8 बजे निकला था लड़का, बोल रहा था दोस्त के घर पार्टी है। घर वालों ने खूब रोका लेकिन माना नहीं! देर रात उसके दोस्त का फोन आया कि विभु अभी तक नहीं पहुँचा! बस तबसे ही खोज रहे थे विभु को। फिर कुछ देर पहले जैसे विभु की आवाज में कोई बाहर से चिल्लाया! बाहर आकर देखा तो कपड़े और ये खून ही मिला। हमको तो लगता है वही ले गई है विभु को। "उन्होने बात ख़त्म की।
पूरी बात सुनने के बाद मेरे भीतर तक एक सिहरन सी दौड़ गई। कल तक हमारी आँखों के सामने घूमता विभु आज अतीत बन गया था। न जाने उस भटकती आत्मा को चाहिए क्या? आखिर क्या गलती थी विभु की ?
यह पहला अवसर नहीं था जब कोई नवयुवक इस तरह से गायब हुआ हो। पिछले कुछ महीनों से ऐसी कई घटनाएँ हुई हैं, बाद में गायब हुए व्यक्ति का शव बरामद होता है वह भी निर्वस्त्र और क्षत विक्षत!
ऐसा नहीं है कि पुलिस ने अपना काम नहीं किया किन्तु कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं जिनका कोई स्पष्टीकरण नहीं मिल पाता। कितने ही तंत्र मंत्र के गुणी भी इस आत्मा को भगाने या वश में करने के प्रयास में काल कावलित हो गए थे। पूरे क्षेत्र में खौफ बढ़ता ही जा रहा था।
एक पत्रकार होने के कारण मैं इस तरह की बातों में यकीन तो नहीं करता किन्तु जो कुछ भी हो रहा था उसे नकारा भी नहीं जा सकता था। हर अपराध की जड़ में कोई न कोई कारण अवश्य ही होता है और अब मैं यही कारण तलाशने में जुट गया था।
धीरे धीरे मैं इस आत्मा का शिकार हो चुके सारे परिवारों से मिला तो पता चला कि मरने वाले सभी लड़के ही हैं और सभी की उम्र 18 बरस से कम थी। और एक खास बात थी कि यह घटना अचानक ही एक साल पहले होनी शुरू हो गई थी।
मैंने किसी तंत्र मंत्र के जानने वाले का पता लगाने की ठान ली थी। अगले कुछ दिनों में मैं कितने ही तांत्रिक और वशीकरण बाबा से मिल चुका था। अधिकांश बाबा फ़्रॉड थे। मैं लगभग निराश हो चला था कि एक अघोरी बाबा के बारे में कहीं से जानकारी मिली। उनसे मिलने के लिए मुझे श्मशान जाना पड़ा।
वे वास्तव में बहुत पहुंचे हुए थे,मेरे आग्रह पर वे मदद के लिए तैयार हो गए। उन्होने गायब हुए विभु के कपड़े लाने के लिए मुझसे कहा और दो दिन बाद अमावस्या की रात को वहीं श्मशान में मुझे बुलाया।
मैं बाबा के पास पहुँच गया था। आधी रात के समय वे अपनी साधना में लीन थे बिना आँखे खोले ही उन्होने प्रश्न किया ले आए जो मंगाया था।
जी... मैंने जवाब दिया।
बाबा ने पहले ही पूरी तैयारी की हुई थी। कुछ देर के मंत्रोच्चारण के बाद बाबा ने उन कपड़ों पर जल छिड़का और फिर अग्नि में डाल कर उन्हें भस्म कर दिया।
अपने ही एक शिष्य को उन्होंने पास ही में बैठा रखा था। अभी तक सामान्य से दिखने वाले शिष्य के हावभाव अचानक बदलने लगे थे। उसकी आँखें लाल सुर्ख दिखाई पड़ रही थी। धीरे धीरे उसके गुरराने की आवाज सुनाई पड़ने लगी थी। मेरे भीतर भय की लहर दौड़ गई थी। बाबा ने मुझे इशारे से पास में रखी रस्सी से उसे बाँधने का इशारा किया। अब बाबा ने उससे प्रश्न पूछने शुरू किए!
कौन है तू, क्यूँ बच्चों की जान के पीछे पड़ी है?
प्रश्न पूछते ही शिष्य की आंखों में मानो खून उतर आया। गुर्राते हुए उसने कहा, "बच्चे... ये बच्चे हैं?... एक एक को चबा डालूंगी.... उसके नथुने क्रोध से फाड़फड़ा रहे थे, गुस्से से काँपते हुए उसने जवाब दिया।
" आखिर तुम्हारी क्या दुश्मनी है इन लड़कों से?"
" कितनी खुश थी मैं उस दिन, माँ पापा का सपना पूरा किया था मैंने, डॉक्टर बन गई थी। देर रात गए अपने दोस्तों के साथ सेलिब्रेट करने के बाद मैं घर लौट रही थी कि तभी चार दरिंदों की गंदी निगाह मुझपर पड गई। उन्होने मेरे शरीर की बोटी बोटी कुत्तों की तरह नोच डाली। जब इतने से भी उनका मन नहीं भरा तो मुझे बीच सड़क में निर्वस्त्र मरने के लिए छोड़ दिया। पूरी रात मैं गुजरने वाले हर राहगीर के लिए मनोरंजन का साधन बनी रही लेकिन किसी ने भी मेरी मदद नहीं की। अंततः अपमान मन और छलनी शरीर के साथ मैंने दुनिया को अलविदा कह दिया। मेरे चार गुनहगारों में से एक जिसकी आयु 17 साल थी उसने ही मेरे साथ सबसे ज्यादा बर्बरता की थी लेकिन वह अपनी आयु के सहारे कानून के शिकंजे से बच निकला। कानून शायद माफ कर सकता है लेकिन मुझे जीते जी नरक में धकेलने वाले को मैंने माफ नहीं किया और उसको भी वही मौत दी जो उसने मुझे दी थी।
लेकिन मेरी आत्मा को तब भी शांति नहीं मिली... आधी रात को सड़कों पर घूमने वाले इन जानवरों का मैं इसलिए शिकार करती हूं ताकि ये किसी मासूम का शिकार न करने पाएँ। "
पूरे माहौल में चुप्पी पसर गई। हम मानते हैं तुम्हारे साथ गलत हुआ है लेकिन इस तरह मासूमों को मारकर क्या हासिल होगा?
मासूम नहीं है वो.... वह गरज उठी। और एक तेज़ आवाज के साथ शिष्य की गर्दन एक ओर लटक गई।
यह वीभत्स दृश्य देख मेरे पूरे शरीर में कंपकंपी हो रही थी और वह जा चुकी थी अपने अगले शिकार की तलाश में।
Sonia nishant kushwaha
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