"आह.... ह.. छोड़ दो... छोड़ दो..."
"ओउम.. चमुंडाएँ विच्चे.. ओउम.. भीम भट्ट..."
"उमम्मम......!!"
रात्रि के तीसरे पहर बाहर से आती चीखों से विशाल की नींद टूटी।
नींद में अर्ध चेतन मस्तिष्क से एक बार तो उसने नजरअंदाज करके फिर से आँखें बंद कर ली लेकिन लगातार आती चीख पुकार से वह ज्यादा देर तक लेट नहीं सका और दौड़ते हुए घर के बाहर तक आ पहुँचा।
"उफ्फ यह कैसी चीख पुकार मची है!" उसने नींद से आँखें मलते हुए कहा।
अगले कुछ ही मिनटों में उसका दिमाग सुन्न हो गया था। यह भयंकर चीख पुकार पड़ोस वाले घर से आ रही थी। खिड़की से बाहर निकलता धुआँ और अंदर से दिल दहला देने वाली चीखें जिनके बीच बीच में मंत्रोच्चारण की गूँजती ध्वनि भी कानों में पड़ रही थी।
"आखिर हो क्या रहा है यहाँ?"
शहर के पॉश इलाके में बनी इस कॉलोनी में हाई क्लास, एजुकेटेड लोगों का बसेरा है। यहाँ से तंत्र मंत्र और इस तरह की अद्भुत चीख पुकार!! विशाल किसी नतीजे पर पहुंचता उससे पहले ही उसका पत्रकार दिमाग अंदर से अपना कैमरा बाहर लाने का संदेश दे चुका था। मिनट के चौथाई हिस्से से भी पहले विशाल दौड़ते हुए अपने कमरे में गया और अपना प्रोफेशनल कैमरा लेकर बाहर की ओर दौड़ पड़ा। धीरे धीरे आसपास के लोग भी आवाजें सुनकर घरों से बाहर निकलने लगे थे। विशाल अपना कैमरा साधते हुए गुप्ता के मकान की चारदीवारी में दाखिल हो गया था।बाकी लोग डर और घबराहट के मारे अंदर आने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। विशाल ने मुख्य दरवाजे को धकेलने की कोशिश की लेकिन वह अंदर से बंद था। खिड़की को धकेल कर देखा तो वह झटके से खुल गई। अंदर का दृश्य देख विशाल की रूह काँप उठी। गुप्ता की बहू खुद को फाँसी पर लटका चुकी थी, फंदा उसके गले में फँस चुका था और वह अपनी आखिरी साँस खींच रही थी। गला घुटने से उसकी आँखें बाहर निकल आई थी। हाथों पर नीले निशान थे।
अपने कैमरे को फोकस करते हुए विशाल ने तुरंत एक तस्वीर निकाली ली। नीचे देखा तो गुप्ता जी लहूलुहान जमीन पर पड़े थे. उनकी भी आँखें बाहर लटकी थी। शरीर के ऊपरी भाग पर कोई वस्त्र नहीं था और सीना बीचों बीच फटा हुआ था। सीने से फूटती खून की धार यह बता रही थी कि अभी कुछ क्षण पहले ही उनकी मृत्यु हुई है। इससे ज्यादा देख पाने की हिम्मत नहीं बची थी। इतना खून खराबा देखकर विशाल को उल्टी हो गई।
कुछ देर बाद पुलिस गुप्ता के मकान के बाहर खड़ी पूछताछ कर रही थी। दो पुलिस वाले ताला तोड़ कर अंदर पहुँच गए थे।
"सबसे पहले किसने इनके चीखने की आवाजें सुनी?"
"जी मैंने, मैं विशाल, बगल के मकान में अभी कुछ दिन पहले ही रहने आया हूँ। मैं एक पत्रकार हूँ अभी एक महीने पहले ही दैनिक आशा अखबार में मैंने एज ए इंटर्न जॉइन किया है।"
"तो क्या देखा आपने?"
"सर मुझे चीखने की आवाजें सुनाई पड़ी तो मैं उनके घर की तरफ दौड़ पड़ा। जैसे ही मैंने खिड़की से झाँका, वहाँ उनकी बहू खुद को फाँसी लगा चुकी थी लेकिन उस समय तक जीवित थी। उसके पाँव में हलचल मैंने खुद देखी उसके एक सेकंड बाद ही वह शांत हो गई। नीचे नजर गई तो हर तरफ खून ही खून दिखाई पड़ा, गुप्ता अंकल नीचे पड़े हुए थे। बस उसके बाद आपको फोन कर दिया। "
पुलिस ने आसपास के घरों में भी पूछताछ की और सबके बयान लेकर चारों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया।
गुप्ता का बेटा और उसकी पत्नी भी वही दूसरे कमरे में मृत पाए गए। उसकी पत्नी की गर्दन धड़ से अलग मिली थी। आसपास बिखरा सामान तंत्र मंत्र के लिए बलि की ओर इशारा कर रहा था। गुप्ता का बेटा भी फाँसी पर लटका मिला किन्तु उसके दोनों हाथ बांधे होने से खुदकुशी की पुष्टि नहीं हो सकी।घर अंदर से बंद था और अंदर रहने वाले चार लोगों में से कोई भी जीवित नहीं था। यह हत्याकांड पुलिस के लिए भी एक पहेली बन गया था।
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"अरे यार हो कहाँ तुम, दो दिन से ऑफिस भी नहीं आ रहे हो?" विशाल की सहकर्मी और दोस्त नीरजा ने बेतकल्लुफ होकर कहा।
"अच्छा सुनो! मुझे कोई बहानेबाजी नहीं चाहिए, आज मेरी सगाई है और तुम आ रहे हो!"
"देखो! नीरजा...!!" विशाल ने कुछ कहने का प्रयत्न किया।
" ठीक है फिर भूल जाना तुम्हारी कोई दोस्त थी।"
" सुनो! मुझे पता है तुम आ रहे हो, अपना कैमरा लाना मत भूलना, पूरे फंक्शन को रिकॉर्डिंग और तस्वीरों से तुम्हें चार चाँद लगाने हैं। चलो अब मैं रखती हूँ। "
" अरे वाह! मेरे शेर तुम तो बिल्कुल टाइम पर पहुँच गए। अब बताओ कुछ हुआ है क्या? " नीरजा विशाल को देखते ही खुशी से झूम उठी।
" नीरजा वो मेरे पड़ोस में....!! "
" हाँ आई सुबोध...!! "प्लीज माइंड मत करना, मैं अभी आती हूँ। विशाल की बात सुने बिना ही नीरजा जा चुकी थी।
जाने क्यूँ जबसे विशाल ने अपनी आंखों से वो सब देखा था उसकी तबीयत कुछ खराब रहने लगी थी। आज भी उसे तेज़ बुखार था लेकिन अपनी प्यारी दोस्त को उसकी सगाई के दिन वह मना नहीं कर पाया और चला आया था।
सगाई का समय हो गया था। नीरजा और सुबोध एक दूसरे को अंगूठी पहना रहे थे । विशाल ने कुछ तस्वीरे और उनकी अंगूठी पहनाते हुए सुंदर विडियो रिकॉर्ड कर लिया था। तभी उसका सर चकराया और वह नीचे गिर पड़ा। दफ्तर के ही दो तीन साथियों ने उसे सहारा देकर उठाया और अंदर कमरे में पहुँचा दिया।
विशाल को अभी भी काफी कमजोरी महसूस हो रही थी। उसने टैक्सी बुलाकर वापिस घर जाना ही उचित समझा।
"टिक टोक टिक टोक..." सुबह के छह बजे अलार्म विशाल को जगा रहा था।
"उफ्फ मैं रात को मोबाइल ऑफ करके ही सो गया।" अरे यह क्या इतनी सारी मिस कॉल...!!"
"हाँ बोलो सुमंत क्या हुआ मेरी तबीयत खराब थी इसलिए रात को मैं फोन ऑफ करके सो गया था। कुछ खास बात...? "
" विशाल, नीरजा... नीरजा नहीं रही....!! "
" क्या... क्या बोल रहे हो.. होश में हो, कल ही तो उसकी...!!" लफ्ज़ जैसे हलक में अटकने लगे थे विशाल के।
" यार कल रात को ही तेरे निकलने के बाद अचानक नीरजा चिल्लाने लगी। वो पागलों की तरह चीख रही थी, पता नहीं क्या बोल रही थी। उसकी आँखे पलट गई थी। फिर उसने सुबोध का हाथ पकड़ लिया। सुबोध को वह अंदर कमरे की तरफ घसीटने लगी। सब कुछ बहुत डरावना और आश्चर्यजनक था। कोई कुछ समझ ही नहीं पा रहा था कि हो क्या रहा है। इससे पहले कि कोई कुछ करता नीरजा सुबोध को लेकर अंदर कमरे में जा चुकी थी। हम सब बाहर से कमरे का दरवाजा पीट रहे थे। दरवाजा तोड़ने की भी बहुत कोशिश की लेकिन कुछ नहीं हुआ। तभी एक जोरदार चीख की आवाज आई और हम सब के कलेजे उछल कर मुँह को आ गए। नीरजा की मम्मी तो वह चीख सुनकर ही बेहोश हो गई। किसी तरह दरवाजा तोड़ कर अंदर पहुँचे लेकिन तबतक सब कुछ ख़त्म हो चुका था। नीरजा की गर्दन धड़ से अलग पड़ी थी। और सुबोध पंखे से झूल रहा था। उसकी फटी हुई आँखों में खौफ स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था। समझ नहीं आ रहा था कि ये सब कैसे और क्यूँ हुआ। क्या सुबोध ने नीरजा को मारकर आत्महत्या कर ली या नीरजा ने सुबोध को.. लेकिन ऐसा कैसे हो सकता कि उसकी गर्दन धड़ से अलग हो जाए! मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा यार!! कल रात जो देखा इतना भयानक मंजर मैंने अपने जीवन में कभी न देखा न सुना!!
कुछ तो बोल यार... मैं समझ सकता हूँ वो तेरी बहुत खास दोस्त थी...! मैं कल रात से ही तेरा फोन मिला रहा था। उनकी बॉडी को पोस्टमार्टम के लिए ले गए हैं, मैं अभी अभी वहाँ से निकला हूँ। चल रखता हूँ, अपना ध्यान रखना!! "सुमंत पूरी बात बताकर फोन रख चुका था लेकिन विशाल के मन मस्तिष्क में एक एक शब्द गहरी चोट कर रहा था। नीरजा की गर्दन अलग थी और सुबोध फाँसी से लटका हुआ था, आखिर किसने मारा... क्यूँ मारा... वो दोनों तो एक दूजे को इतना चाहते थे। रोते हुए विशाल का चेहरा भीग रहा था।
कुछ देर बाद एक विचार उसके दिमाग में कौंधा.. ठीक इसी तरह तो गुप्ता परिवार की मौत हुई थी लेकिन उस घटना का नीरजा से क्या संबंध हो सकता है!!
इस समय सबसे जरूरी था नीरजा के घर जाकर उसके अंतिम संस्कार में शामिल होना। जल्दी से तैयार होकर वह नीरजा के घर की तरफ निकल पड़ा।
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"अंकल आप कुछ जानते हैं, गुप्ता जी के परिवार के बारे में उनकी मौत कैसे हुई? या कभी उन्होने कुछ बताया हो आपको कि उनकी जान को खतरा है!!" विशाल गुप्ता जी के पड़ोसी और उनके खास मित्र के यहाँ मामले की तह तक जाने के उद्देश्य से आया था।
"बेटा, मुझे लगता है उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया था । काफी दिन से बोल रहा था एक साया उसके घर के चक्कर लगा रहा है। फिर उसकी गर्भवती बहू का गर्भपात हो गया तो भी कहने लगा कि वही साया मेरे पोते को ले गया है। फिर किसी तांत्रिक के यहाँ आने जाने लगा था। पता नहीं क्या क्या तंत्र मंत्र करता था। अक्सर उनके यहाँ से अजीबोगरीब आवाजें भी आती थी। हमने तो ध्यान देना ही बंद कर दिया था। फिर उस रोज जो हुआ तुमने देखा ही था।
मुझे तो लगता है कोई सिद्धि पाने के चक्कर में खुद ही सबकी बलि दे दी उसने। फिर खुद भी मर गया होगा।"
" अंकल आपको कुछ पता है कौन तांत्रिक था जिनसे मिलने जाते थे गुप्ता अंकल! "
" पक्का तो नहीं पता बेटा, लेकिन वही मंदिर के पीछे जो बस्ती है वहीं किसी दरगाह में बैठता था। एक बार गुप्ता ने बताया था। "
" ठीक है, थैंक यू अंकल!! "
गुप्ता ने बलि ली होती तो वह खुद का सीना चीरकर नहीं मरता। कोई ऐसा नहीं कर सकता। ये सब कुछ और ही चक्कर है।
" बाबा आप गुप्ता जी को जानते हैं ना, उनकी मौत हो गई है। "विशाल किसी तरह बाबा तक पहुँच चुका था।
" नहीं मैं नहीं जानता!! "
"झूठ मत बोलिए सच सच बताइए, नहीं तो अभी पुलिस को बुलाता हूँ। क्या जादू टोना सिखाते थे आप कि उन्होने अपने पूरे परिवार की जान ले ली!!" विशाल ने डाँटते हुए पूछा।
बाबा थोड़ा सकपका गया।" हाँ जानता हूँ लेकिन मैंने कुछ गलत नहीं सिखाया। उसके पीछे एक बहुत शक्तिशाली रूह लगी थी। अमावस्या की रात उसके परिवार पर भारी थी इसलिए मैंने उसे कुछ तंत्र विद्या बताई थी,वैसे तो उसके परिवार की मौत निश्चित थी लेकिन शायद उस विद्या से उनका बचाव हो जाए यही सोचकर मैंने उसे सब बताया था। लेकिन वह रूह मेरे अंदाज़े से कई गुना शक्तिशाली निकली, उसने सबको ख़त्म कर दिया। "
विशाल घर लौट आया था," उफ्फ रूह.. साया... क्या है ये सब!!"
नीरजा को याद करते हुए उसने जैसे ही कैमरे की विडियो ऑन की सामने सुंदर सी नीरजा दिखाई पड़ी जो मुस्कुराते हुए सुबोध को अंगूठी पहना रही थी। लेकिन... उसके बाद आगे भी विडियो बना था... एक रूह नीरजा का गला दबा रही थी । बहुत भयानक चेहरा.. आँखें फटी हुई.. कटा पिटा चेहरा.. वह नीरजा और सुबोध को खींच कर भीतर ले जा रही थी । अंदर ले जाकर उसने नीरजा का सर अलग कर दिया और सुबोध को फंदे से लटका दिया।सुबोध का हलक सूखने लगा, हैरानी से आँखे बड़ी हो गई... मैने तो ये सब रिकॉर्ड ही नहीं किया फिर....
अचानक से वह रूह हँसती हुई सामने आ गई है... हंसते हँसते ही अचानक वह क्रोध में चिल्लाने लगी..
"निकाल मुझे इस कैमरे से बाहर वर्ना जो मेरी दुनिया में आएगा उसका यही हश्र होगा। तूने ही तो भेजा था उन दोनों को मेरे पास... हा हा हा..!"
"लेकिन तुम इस कैमरे में आई कैसे...?"
उसके सामने कैमरा में विडियो चलने लगा... गुप्ता की बहू फाँसी से लटकी हुई है और विशाल उसकी तस्वीर खींच रहा है। दरअसल वह खुद नहीं लटकी थी उसे रूह ने जबरन लटकाया हुआ था और उसी क्षण वह तस्वीर में कैद होकर विशाल के कैमरा में आ गई।
विशाल के हाथ से कैमरा छूट कर नीचे गिर पड़ा...!!
"नहीं.. तुम बाहर नहीं आ सकती...!!" विशाल रोते रोते बुरी तरह चिल्लाया!
"तुम कभी बाहर नहीं आओगी... कभी नहीं...!!"
उसने पटक पटक कर वहीं केमरे को तोड़ दिया और कहीं शहर से दूर जाकर जंगल में फेंक दिया।
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"अरे यह देखो कैमरा... इस जंगल में इतना कीमती कैमरा...!! किसका हो सकता है? "
" अरे छोड़ ना तुझे मिला तू रख ले...."
जंगल में कैम्पिंग करने आए लड़कों के ग्रुप को फिरसे वह कैमरा मिल गया था।
"चल ना यार.. एक फोटोग्राफ तो खींच हमारी!!"
"हाँ क्यूँ नहीं..."
क्लिक.. क्लिक...
" आज की ताज़ा खबर... शहर के बाहर कैम्पिंग करने गए लड़कों के एक समूह की लाशें वहीं जंगल में बरामद हुई हैं। पुलिस मामले की जाँच कर रही है। सभी के सर धड़ से अलग पाए गए हैं वहीं उनके ड्राइवर की लाश पेड़ से लटकी हुई मिली है। "
समाचार वाचक खबर पढ़कर सुना रही थी और इधर विशाल की जुबान भय से भीतर ही अटक गई थी।
क्यूँकि वह लौट आई थी..... एक बार फिर से...
सोनिया निशांत कुशवाहा
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