पिछले कुछ दिनों से टीना का मन कुछ उखड़ा सा रहता था। कभी उसका रोने का मन करता तो कभी लगता वो किसी के साथ जी भर कर बातें करे। कभी मन करता कि पूरे दिन बस सोती रहे तो कभी रात रात भर उसे नींद नहीं आती। लेकिन अपने बारे में सोचने का समय ही कहाँ था उसके पास। पति फौज की नौकरी में थे और बीमार मां जैसे अपनी आखिरी साँसें गिन रही थी।
एकाएक माँ का निधन हो गया। टीना अपनी सुध बुध खो बैठी।
अभी दो वर्ष पूर्व ही तो पिताजी का इस छोटी सी पहाड़ी पर स्थित गाँव में तबादला हुआ था। और अब अचानक माँ का यूँ चले जाना!
माँ को दफनाने के लिए ले जाया जा रहा था। इधर टीना ने ज़िद पकड़ ली थी कि वह भी साथ ही चलेगी। अन्ततः उसे भी साथ जाने की इजाज़त मिली और रोते बिलखते उसने माँ को अलविदा कह दिया।
उस छोटे से गाँव में एक रिवाज था कि महिलाओं और पुरुष को अलग अलग कब्रिस्तान में दफनाया जाए।दशकों पहले महिलाओं को पुरुषों से निम्न समझने की सोच के चलते यह शुरू हुआ था।बुजुर्गों के गलत विचार भी कई बार आने वाली पीढ़ियाँ परम्परा समझ कर ढोती रहती हैं। टीना की माँ को महिलाओं के लिए आरक्षित कब्रिस्तान में दफनाया गया था।
कब्रिस्तान से लौटते समय टीना को अपना बदन बहुत भारी और जकड़ा हुआ महसूस हो रहा था, किन्तु इस समय वह खुद पर ध्यान नहीं दे पा रही थी।
एक दो दिन बीते तो घर खाली हो गया। सभी नाते रिश्तेदार अपने अपने देश लौट गए थे। अब घर में वह और उसके बुजुर्ग पिता रह गए थे।अपनी नासाज तबियत की गंभीरता उसे तब समझ आई जब हफ्ते भर बाद वह चकरा कर नीचे गिर पड़ी।उसी दिन उसे यह खुशखबरी मिली कि वह मां बनने वाली है। पूरे दो महीने की गर्भवती थी वह। मन ही मन वह बेहद खुश थी लेकिन उसकी खुशियों में ग्रहण लग चुका था।
उसी रात तकरीबन 2 बजे उसकी नींद खुली तो पाया कमरे की खिड़की हवा के कारण आवाज कर रही है। उसने उठकर खिड़की बंद की और वह फिर से नींद में चली गई। कुछ देर बीतने के बाद उसे अपने कानों में किसी के फुसफुसाने की आवाज सुनाई दी। वह चौंक कर उठ बैठी। पहाड़ी क्षेत्र के ठंडे प्रदेश में होने पर भी इसके माथे पर पसीने की बूँदे दिखने लगी। प्यास से गला सूखने लगा किन्तु बिस्तर से उठने की जैसे ताकत ही खत्म हो गई हो। किसी तरह उठकर उसने पानी का गिलास लिया और वापिस अपने कमरे में दरवाजा बंद कर के लेट गई।
अगली सुबह उसका शरीर बुखार से तप रहा था। आनन - फानन में डॉक्टर ने दवा दी और इंजेक्शन लगाया तो उसकी तबीयत में सुधार होने लगा।
दो तीन दिन बीते तो फिर उसे रात गए लगने लगा जैसे उसके कमरे में कोई है। वह अपने मन का वहम समझकर टालने का प्रयास करती रही किन्तु सच और वहम में अंतर होता है, जिसका पता उसे अगली कुछ रात के बाद चला।
अब दिन में उसे लगता जैसे घर में उसके अतिरिक्त भी हर पल कोई उसके आसपास रहता है। कभी उसे परछाइ दिखाई देती तो कभी लगता कोई छिप कर उसपर नजर रखे हुए हैं।
एक दिन वह सोई तो उसने देखा उसकी माँ आँगन में बैठी हुई चावल साफ कर रही है और उसके पाँव से छूकर वह थाली जमीन पर जा गिरी है. सब तरफ चावल ही चावल बिखरे हुए हैं। वह बेतहाशा एक एक दाना चुन रही है लेकिन चाह कर भी समेट नहीं पा रही।
अचानक वह चीख पड़ती है जिससे उसकी आँख खुल जाती है। घड़ी की ओर नजर घुमाई तो पाया सुबह के चार बजे थे। उसका चेहरा पसीने से तरबतर था।
उसी दोपहर तकरीबन एक बजे उसकी तबीयत बिगड़ने लगी और उसे हॉस्पिटल ले जाना पड़ा। अस्पताल में जाँच होने पर पता चला कि उसके गर्भ में जुड़वाँ बच्चे थे जिनमें से एक की मौत हो चुकी है। एक लंबी चिकित्सीय प्रक्रिया के बाद मृत बच्चे को हटाया गया और उसे बिस्तर पर रहने की सलाह दी गई। ताकि जीवित बचे बच्चे को बचाया जा सके।
टीना के मन में दहशत बैठ गई थी। उसे कहीं न कहीं समझ में आ रहा था कि कोई है जो उसके पीछे लगा है। जब भी वह शक्ति उस पर हावी होती है उसकी तबीयत बिगड़ने लगती है। फिर वह चावल की थाली का बिखरना और उसके बच्चे का चले जाना... वह भीतर से बेहद भयभीत और सहमी हुई थी। न जाने अगला पल क्या मनहूस खबर साथ ले आए।समस्या को छिपाने का समय बीत चुका था, उसी दिन उसने पड़ोस वाली बूढ़ी काकी को सारी बात कह सुनाई। काकी ने पूरी बात सुनकर सदमे से मुँह पर हाथ रख लिया।
"बेटा, जब तू अपनी माँ की मैयत में कब्रिस्तान गई थी, उस समय तू पेट से थी। मान न मान तेरे पीछे कलिहारियाँ लग गई हैं।"
"अम्मा, क्या कह रही हैं आप? क्या रहस्य है इस गाँव का मुझे पूरी बात बताओ, और इससे बचने का रास्ता भी।" टीना फूट फूट कर रोने लगी।
"इस गाँव में औरतों का कब्रिस्तान अलग है ये तो तूने देखा ही है लेकिन इसके पीछे एक लंबी कहानी है। बहुत पुरानी बात है। तकरीबन सौ साल पहले इस गाँव में पुरुषों की सत्ता चलती थी। घर की औरत को इज्जत और सम्मान देना तो उन्होने सीखा ही नहीं था। कितनी ही औरतों को डायन, कुलटा कह कर मार डाला जाता। फिर धीरे धीरे उन औरतों के घर के लोग असमय मरने लगे जिन्हें कभी डायन कह कर मार डाला गया था और कब्रिस्तान में दफना दिया था। जब किसी और की मौत पर लोग कब्रिस्तान जाते तो वहीं से वो डायन अपने परिवार के लोगों के साथ हो लेती और फिर पूरे परिवार को खा जाती। गाँव में पंचायत हुई और यह निर्णय हुआ कि अब से औरतों को अलग कब्रिस्तान में दफनाया जाएगा। और जिनके घर की औरतें मर चुकी हैं वो कब्रिस्तान नहीं जाएंगे।
समय बीतता रहा किन्तु यहाँ के लोगों की मानसिकता नहीं बदली। पहले बेटी के जन्म पर बच्चियों को गला दबा कर मारने वाले, अब इतने क्रूर हो गए थे कि मां और बच्ची दोनों को ज़िंदा दफना आते। फिर जब गर्भ में लिंग की जाँच होने लगी तो यह खूनी खेल और बढ़ गया। कितनी ही औरतों ने बच्चे गिराते समय दम तोड़ दिया। घर में ही जबरन उनका गर्भ गिराया जाता और मौत होने पर जाकर कब्रिस्तान में गाड़ आते। बेटा वे सब सताई हुई आत्माएँ हैं। उनके भीतर दया, ममता नहीं है। जिस तरह से वे अपनी ममता को सीने में दबाए भटक रही हैं वैसे ही वह किसी भी गर्भवती के बच्चे को जीवित नहीं छोड़ती. जिसके पीछे लग जाती हैं उसको अपने साथ ले जाकर ही मानती हैं। इसलिए कभी भी गर्भवती स्त्री कब्रिस्तान की तरफ नहीं जाती। ये कंजरियां गर्भवती को उसकी महक से पहचान लेती हैं और उसके साथ हो लेती हैं। "अम्मा के माथे पर चिंता की लकीरें उभर रही थीं।
" मैं क्या करूँ अम्मा, मुझे बचा लो, मेरा एक बच्चा तो चला गया। लेकिन अब इसको कुछ नहीं होने दूंगी। "टीना बिलखने लगी थी।
" बेटा तू सब्र रख मैं कुछ उपाय करूँगी। वो तुझे डराने की बहुत कोशिश करेगी लेकिन तुझे डरना नहीं है। अगर तू डर गई तो वो तेरा बच्चा ले जाएगी और शायद इस बार तुझे भी! "
अम्मा ने एक पुड़िया में कुछ बाँध कर उसे दिया और हनुमान चालीसा उसे थमाते हुए कहा, "बेटा तुम्हारा धर्म अलग है, हो सकता है तुम भरोसा न करो, लेकिन हनुमान बाबा का ध्यान करना उनसे ऊपर कोई शक्ति नहीं। भगवान ने चाहा तो सब अच्छा होगा। "
आज तक जिस रूहानी शक्ति को टीना ने सिर्फ़ महसूस किया था उससे साक्षात्कार करने का समय आ गया था । वह रसोई में जाती तो लगता रसोई की दहलीज पर बैठी कोई औरत उसे घूर रही है।बिल्कुल साधारण शक्ल सूरत वाली... न आँखों से टपकता खून, न सफेद साड़ी न गला सड़ा शरीर.. एकदम सामान्य सी गहरे काले रंग की महिला जो अपने बड़ी बड़ी बाहर को निकली आँखों से उसे ही घूरती रहती। टीना सबकुछ देख कर भी अनजान बनी रहती। उसे अम्मा की बात रह रह कर याद आती, "डरना नहीं है।"
एक हफ्ता बीत गया था। रात के 12 बजे कमरे से फिर फुसफुसाहट की आवाजें आ रही थी। न चाहते हुए भी उसने आँख खोल कर देखा तो उसके मुँह से चीख निकल गई। एक भद्दा काला सा आदमी उसके चेहरे के बिल्कुल सामने था जैसे उसके ऊपर झुक कर उसे देख रहा हो। वह धीमी धीमी रहस्यमय मुस्कान बिखेरने लगा था। उसके शरीर से भयंकर दुर्गंध आ रही थी। टीना का कलेजा काँप उठा। वह चिल्ला रही थी लेकिन चीख उसके मुँह से बाहर निकल नहीं पा रही थी। पुरुष का चेहरा महिला के चेहरे में बदलने लगा और उसके कानों में फिर से आवाज गूँजने लगी, "ले जाऊँगी आज...."
टीना अपनी पूरी ताकत लगा कर ऊपर उठी और सिरहाने रखी हनुमान चालीसा को हाथ में रखकर लेट गई। उस रात उसे नींद नहीं आई। पूरी रात बेचैनी में कटी। सुबह के चार बजे जब उसकी आँख लगी तो फिर से उसे सपना दिखा। माँ उसे घसीट कर अपने साथ ले जा रही है। वह चीख रही है, माँ का विरोध कर रही है। तभी माँ का चेहरा बदलने लगता है और फिर वही बदसूरत, भद्दी आँखों वाली औरत उसे घसीट रही होती है। उसका पाँव फिर से चावल भारी थाल में टकराता है और सब और चावल बिखर जाते हैं।
इसके बाद टीना की आँख नहीं खुलती।
पूरे एक दिन के बाद टीना को होश आया है। सामने पति और पिता बैठे हुए हैं। वह अस्पताल में है। अम्मा भी पास में बैठी आँसू बहा रही हैं। टीना अपना दूसरा बच्चा भी खो चुकी है। हनुमान चालीसा को हाथ में लिए रहने का प्रभाव था या कुछ और कि टीना किसी तरह जीवित बच गई थी।
अस्पताल के दरवाजे पर अभी भी कोई खड़ा एकटक उसे ही घूर रहा है। कब्रिस्तान की कंजरी का काम अभी ख़त्म नहीं हुआ है। वह धीरे धीरे बुदबुदा रही है, "तुझे चलना ही होगा। मैं ले जाऊँगी....मैं तुझे ले जाऊँगी.. .!!"
सोनिया निशांत कुशवाहा
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