रक्त पिशाच

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Sonia saini
Sonia saini 09 May, 2020 | 0 mins read

जैसलमेर से 12 किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव था। गाँव धन धान्य से परिपूर्ण था। यातायात के साधनों का विकास न होने के कारण लोग एक स्थान से दूसरे स्थान बैलगाड़ी से ही जाते थे। आसपास के गाँव पहुँचने में भी दो दिन का समय लग जाता था। खेती ही उनके जीवन यापन का मुख्य आधार थी। गांव में बिजली नहीं थी इसलिए दिन ढलने से पहले ही पूरा गाँव खा पीकर सोने चला जाता था।

आधी रात गए जब पूरा कुलधरा गाँव नींद के आगोश में खोया था, बिरजू अपने घर में लालटेन जलाए एक पुरानी किताब के पन्ने पलटने में व्यस्त था।

यह कोई आम किताब नहीं थी ।इस किताब की एक अद्भुत कहानी थी। मकान की नींव खुदवाते समय बिरजू को जमीन में से एक भारी बक्सा मिला था । बक्से को देखते ही बिरजू की बांछे खिल उठी। उसने गड़े धन के बारे में अनेक कहानियाँ सुनी थी। जैसे ही उसने वह बक्सा खोला उसके अंदर सिर्फ एक पुस्तक के अलावा कुछ नहीं दिखाई पड़ा। बिरजू असमंजस में पड़ गया! आखिर ऐसा क्या है इस किताब में जो इसे छिपाने के लिए इतने भारी भरकम बक्से को जमीन में गाड़ दिया गया! बिरजू ने जैसे ही पुस्तक का पहला पृष्ठ खोला अचानक ही धरती हिलने लगी। इतना भयानक भूकंप की सभी अपने अपने घरों को छोड़ बाहर की ओर दौड़ पड़े। कुछ ही देर में रेतीली आँधी चलने लगी। भयंकर आँधी देखकर लगता था अभी जलजला आ जाएगा। कुछ घंटों के बाद सब कुछ सामान्य हो गया। बिरजू भी किताब को भूल तूफान से बिगड़ी अपनी गृहस्थी को ठीक करने में लग गया। आधी रात के बाद अचानक फिर से उसे बक्से और उस रहस्यमय किताब का ध्यान आया। अपनी उत्सुकता को वह ज्यादा देर तक भीतर नहीं दबा सका और लालटेन जला कर किताब के पन्ने उलटने लगा। किताब कुछ अद्भुत लिपि में लिखी गई थी। किंतु इतना अवश्य समझ आ रहा था कि कोई मंत्र लिखे गए हैं। बीच बीच में कुछ विशेष चिंह भी अंकित थे। चिन्हों को ध्यान से देखने पर उसे लगा जैसे किसी ने गृह नक्षत्र इत्यादि का चित्र अंकित किया हुआ है। कुछ भयानक चेहरे भी पुस्तक के विभिन्न पृष्टों पर अंकित थे। बिरजू की उस पुस्तक को पढ़ने की उत्सुकता चरम पर पहुँच गई थी। अगले कुछ और पन्ने पलटने के पश्चात उसने पाया कि आगे लिखे गए श्लोक व मंत्र हिंदी में लिखे हुए हैं। वह गंभीर होकर पुस्तक को पढ़ने लगा।

"यह पुस्तक कोई आम पुस्तक नहीं, इसमें आज तक की सबसे अद्भुत दैत्य शक्ति रक्त पिशाच को बुलाने और उससे लाभ लेने की विधि वर्णित है।" तीन पंक्तियाँ के बाद ही बिरजू का हलक सूखने लगा और पसीना उसके कानों को भिगोने लगा। रोमांच और भय के मिश्रित भाव के साथ उसने आगे पढ़ना शुरू किया।

"रक्त पिशाच एक अत्यधिक शक्तिशाली पिशाच है, एक बार यदि इसे अपने काबू में कर लिया जाए तो यह मनुष्य को पूरी धरती का स्वामी बना सकता है। धन दौलत, ऐश्वर्य, खेत खलिहान ऐसी कोई वस्तु नहीं जिस पर यह विजय नहीं दिला सकता।" बिरजू की आँखें चमक उठी। उसने अलादीन के चिराग के किस्से सुने तो थे किन्तु वास्तव में ऐसा कोई चिराग उसके हाथ लग जाएगा यह उसने स्वप्न में भी नहीं सोचा था। आगे बताई गई विधि के अनुसार उसने सारी सामग्री जमा कर ली और दो बकरे भी वहीं बांध लिए। पुस्तक में दिए गए वर्णन के अनुरूप ही उसने पूरा तंत्र मंत्र का विधान शुरू कर दिया। रात के ठीक 2 बजे जब वातावरण में गहरी ठंडक फैल रही थी, पेड़ की डाल पर बैठे उल्लू अपनी सन्नाटे को चीरती आवाज के साथ नसों में कंप कंपी बिखेर रहे थे और दूर जंगल से सियारों के रोने की भयानक आवाजें किसी अनहोनी का अंदेशा जाहिर कर रही थी, बिरजू अपने आसपास के वातावरण से पूरी तरह अनाभिग्य होकर तंत्र मंत्र में पूरी तरह से डूब गया था। आखिर में बकरों की बलि देकर उनके रक्त से पुस्तक में चित्रित आकृति को स्नान कराने के पश्चात उसके घर से एकाएक बर्तन गिरने की आवाजें आने लगी। बाहर से कुत्तों के रोने की बदस्तूर आवाजें सुनाई पड़ रही थी। कुत्तों के ही साथ बिल्लियों के भी रोने की आवाज़ आनी शुरू हो गई थी. बिरजू के कमरे में अचानक धुआँ फैलने लगा और देखते ही देखते उसमें से एक आकृति निकलती दिखाई पड़ने लगी। बिरजू को अपनी आँखों पर अभी भी भरोसा नहीं हो रहा था।

धुआँ नुमा आकृति गरज के साथ बुदबुदाई... क्यूँ बुलाया मुझे मेरी दुनिया से...! तू जानता है इसका अंजाम क्या होगा..!

"लेकिन... मैं... मैं तो तुम्हारा मालिक हूँ.. तुम्हारा आका...! तुम्हें मेरा हर हुक्म मानना होगा। मैं ही तुम्हें इस दुनिया में लेकर आया हूँ।" बिरजू ने कहा।

"रक्त पिशाच क्रोध में चिल्लाया, तू मेरा आका बनेगा? तू...? तुझे मैं अभी अपनी उँगलियों से मसल सकता हूँ। "

बिरजू के होश उड़ गए थे, "इसका मतलब यह मेरे हुक्म नहीं मानने वाला.". बिरजू मन ही मन बड़बड़ाया।

" तूने मेरे आराम में खलल डाली है, मैं अपने लोक में सुकून से जी रहा था, तूने मुझे वहाँ से इस लोक में ला पटका। सबसे पहले मैं तुझसे तेरा शरीर छीन लूँगा। "

रक्त पिशाच ने बिरजू के शरीर में प्रवेश लिया। अब उसे अपनी रक्त क्षुधा मिटानी थी! सुबह हो चुकी थी। रक्त पिशाच की शक्तियाँ कुछ कम होने लगी। वह बिरजू के भेस में गाँव में घूमने लगा और मौका पाकर उसने दो गाय का रक्त पीकर अपनी भूख शांत कर ली।

किन्तु यह मात्र आदि था, अंत कितना भयानक होने वाला है यह सोचे समझे बिना ही बिरजू ने एक अकाट्य शक्ति को अपने गाँव में आमंत्रण दे दिया था। बिरजू ने तो इसकी कीमत अपनी जान देकर चुका दी किन्तु यह सिलसिला अब आम हो चला। हर रात कभी जानवर गायब हो जाते तो कभी इंसान। सब ओर त्राहि माम मच गया। रक्त पिशाच शिकार करने के बाद और भी शक्तिशाली हो जाता था। उसकी भूख बढ़ती जा रही थी इधर गाँव में लोगों को उसपर शक हो गया था। वह सिर्फ़ रात में बाहर निकलता और बाकी पूरा दिन अपने घर में छिपा रहता।

गाँव के एक सयाने ने अपनी शक्तियों को साध कर गाँव में हो रही घटनाओं पर ध्यान केंद्रित किया तो उसे सारा खेल समझ आ गया।

स्थिति नियंत्रण से बाहर हो चुकी थी। अब तक गाँव के 20 लोग गायब हो चुके थे। सयाने ने अपनी शक्तियों से ध्यान मग्न होकर एक ताबीज बनाया और बिरजू के घर की ओर चल पड़ा। जाने से पहले उसने अपने एक शिष्य को कुछ समझाया और फिर ईश्वर का ध्यान कर के वह निकल पड़ा।

बिरजू के घर में कदम रखते ही सयाने को जैसे एक जोरदार झटका लगा और वह दूर जा गिरा। झटका इतना जोरदार था कि उसके शरीर के एक हिस्से में लकवा मार गया। वह अभी भी अपने कार्य के लिए संकल्पित था। घिसटते हुए उसने फिर से घर के प्रवेश किया। सामने से बिरजू गर्दन टेढ़ी करके गुरराता हुआ बाहर निकला।

"चला जा यहाँ से.... चला जा..." रक्त पिशाच चिल्लाया।

सयाने ने फिर से बिरजू के पास पहुँचने का प्रयत्न किया लेकिन उससे पहले ही साथ की दीवार उसपर गिर पड़ी। सयाने की वहीं मौत हो गई।

गाँव वाले दूर खड़े सारा मंजर देख रहे थे। रक्त पिशाच सिर्फ़ रक्त नहीं पीता था अपितु पूरा शरीर एक ही बार में निगल जाता था। क्या जानवर क्या मनुष्य कोई भी उसके प्रकोप से नहीं बच रहा था।

सयाने बाबा की मौत की खबर सुनते ही उनके शिष्य ने पूरे गाँव को इकट्ठा किया और कहा, "गुरुजी को शायद पिशाच की शक्ति का अंदाजा था इसलिए वह मुझे एक अंतिम उपाय बता कर गए हैं।गुरुजी के अनुसार पिशाच को अब तक क्रोध आ चुका होगा। वह हम सभी को हमारी सुगंध से पहचानता है। हम यह गाँव छोड़कर जहाँ भी जाएंगे यह हमारे पीछे वहाँ तक आएगा। इसलिए सबसे पहले हमें इसे इस गाँव के भीतर ही बांधना होगा। ताकि जो हमारे साथ हुआ वह किसी और के साथ न हो।

हम लोग इस जन्म में इसके प्रकोप से नहीं बच सकते। हमारे गाँव से अपनी भूख मिटाने के बाद यह बाकी के गाँव भी नहीं छोड़ेगा... और एक एक करके सबको खा जाएगा।

भाइयों यह बलिदान का दिन है। हम सभी को अपनी बलि देकर दुनिया को बचाना होगा। यह रक्त पिशाच है, सिर्फ़ ज़िंदा मनुष्य ही इसका भोजन नहीं है अपितु यह अपने शिकारों की आत्माओं का भी सेवन करता है। यह आत्माओं को या तो अपना भोजन बना लेता है या फिर अपने पास कैद करके नरक से भी ज्यादा यातनाएँ देता है। हम सभी को स्वयं अपनी जान देनी होगी ताकि हम इसका भोजन न बनने पाएँ। "

उसी रात पूरे गाँव ने सामूहिक आत्महत्या कर ली थी।वे लोग जीना चाहते थे,असमय मृत्यु के कारण उनकी आत्माएँ कभी तृप्त नहीं हो सकी और आज भी वहीँ भटक रही हैं। अपने घरों का अपने आँगन, अपने खेत का मोह उन्हें आज भी कुलधरा से बांधे हुए है।

पिशाच ने एक एक करके गाँव के सभी जानवरों को अपना शिकार बना लिया था।उसकी भूख और क्रोध की सीमा बढ़ती ही जा रही थी। बिरजू के शरीर को छोड़ पिशाच अब अपने वास्तविक स्वरूप में आ गया था। वह धूल और धुएँ के गुबार की तरह एक घर से दूसरे घर घूमता रहा किन्तु उसे कोई भी जीवित मानव नहीं दिखाई पड़ा। अंत में लंबे समय तक कोई शिकार न मिलने पर वह सुप्त अवस्था में पहुँच गया। पिशाच ने गाँव की सीमा पर करने का भी बहुत प्रयास किया किन्तु सयाने बाबा ने सिद्धियों से अपनी मृत्यु पूर्व ही पूरे गाँव की सीमा को हनुमान बाबा की भबूत से स्पर्श करा कर कीलित कर दिया था।

रातों रात पूरा गाँव कब्रिस्तान में बदल गया था।गाँव के लोगों की हँसी ठिठोली के स्थान पर अब वहाँ मरघट की तरह सन्नाटा पसर गया था। कोई रोने वाला तक शेष नहीं बचा था। रातों रात इस गाँव के यूँ मरघट बन जाने और वीरान हो जाने का रहस्य कभी कोई नहीं जान पाया। यह गाँव आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेशा एक पहेली बना रहा। आज भी वह रक्त पिशाच इसी गाँव की सीमा में कैद है, बस सुप्त अवस्था में है। इंसानी रक्त की महक से वह कभी भी जाग सकता है इसलिए आप लोग तुरंत यहाँ से निकल जाइये। कुलधरा गाँव की सीमा पर खड़े एक बूढ़े बाबा ने वहाँ घूमने आए लड़कों के समूह को समझाया।

"लेकिन हमने तो सुना है कि यहाँ बहुत सी प्रेत आत्माएँ रहती हैं।"

"हाँ सही सुना है तुमने, वे प्रेत कोई ओर नहीं कुलधरा के निवासी हैं जो अपने गाँव और जमीन पर किसी और के कदम नहीं पड़ने देना चाहते। वे नहीं चाहते कि पिशाच फिर से वही रक्त पात मचाए इसलिए वे यहाँ पर किसी को भी रुकने नहीं देते। "

" अगर उस रात सभी लोग मारे गए थे, और यह गाँव सारी दुनिया के लिए पहेली है तो आपको ये सब कैसे पता है? "दूसरे लड़के ने प्रश्न किया।

बूढ़े बाबा मुस्कुराये और फिर कुलधरा की ओर गंभीरता से देखने लगे। कुछ ही पल में धूल भरी आंधी के साथ बाबा भी हवा हो चुके थे।

घूमने आए लड़कों का समूह अपने पसीने पोंछते हुए जल्दी से जल्दी वहाँ से निकल रहे थे। सच ही कहते हैं कुलधरा गाँव रहस्यों की खान है।

सोनिया निशांत कुशवाहा

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