ज़िन्दगी लग रहा है मानो एक दौड़ हो गई है। दिन के चौबीस घंटे पंख लगाकर कब और कैसे फुर्र हो जाते हैं पता ही नहीं चलता। घड़ी की सुइयों के साथ ताल मिलाकर हर काम को अंजाम देने के बाद भी हर रोज बिस्तर पर लेटते ही अधूरे रह गए कुछ काम और जिम्मेदारियाँ मन को कचोटने लगती हैं। अपराध बोध से मन भारी हो जाता है और खुद के लिए बमुश्किल निकाले 6 घंटे में से भी आधे एक घंटे की नींद में चिंताएँ सेंध लगा लेती हैं। फिर बचे हुए कामों को रविवार के जिम्मे छोड़ फिर से एक जिम्मेदार मा होने के अहसास के साथ मै नींद में खो जाती हूँ। रविवार की तो अपनी अलग ही व्यथा है। सबकी खाने की फरमाईश से शुरू होने वाला दिन हफ्ते भर के कपड़े इस्त्री करते हुए बाजार से खरीदारी करते हुए कहाँ खो जाता है पता ही नहीं चलता।
बच्चे बड़े तो हो रहे हैं लेकिन उनका बचपन कब और कैसे हाथों से सरका जा रहा है पता ही नहीं चल रहा। खुद पढ़े लिखे होने पर भी बच्चों को पढ़ाने के लिए समय नहीं है। मन मसोस कर रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं।........
शिकायतें तो आपको भी बहुत सी होंगी मेरी तरह तो क्यूँ न लॉकडाउन से बचे बाकी के 14 दिनों को उन चीजों के लिए समर्पित करें जिनके लिए आप और मैं हमेशा अफसोस ही जताते रहे। आप को याद है आप कब आखिरी बार बच्चों के साथ खुल कर हँसे थे। बचपना किया था। उनके साथ प्लास्टिक का बैट लेकर आप बैटिंग करने छत पर या आँगन में गए थे। कब फ़ुर्सत से अपनी बड़ी होती बेटी के बालों में तेल लगाते हुए उसके लड़कपन के किस्से सुने थे। कब उसकी मां से ज्यादा सहेली बनने की कोशिश की थी। दुनिया की ऊंच नीच के बारे में एक समाचार पत्र की तरह नहीं एक सहेली, एक सच्चे मित्र की तरह उनको समझाया था।
कितनी शिकायत है ना हमें कि बच्चे हमारी सुनते नहीं, ज़िद्दी हुए जा रहे हैं, आपको पता है 80 प्रतिशत बच्चे सिर्फ़ माता पिता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ऐसा व्यवहार करते हैं। क्यूँ न उनके बाल मन को समझने की कोशिश करें। इन 14 दिनों में उनके साथ खेलें पढाई करें । उनकी पसंद का खाना बनाकर, उनके साथ खुलकर हंसकर देखिए ये 14 दिन कैसे बीत जायेंगे पता भी नहीं चलेगा।
याद है पिछली कक्षा में आपके बेटे के गणित में कम अंक आए थे। कितनी तकलीफ हुई थी आपको, क्यूँ न बेटे के साथ रोज एक घंटा गणित का अभ्यास किया जाए, बेटे को भी तो पता चले मम्मा कितनी टैलेंटेड है।
और वो दीवार पर टँगा गिटार जिसे देख बेटा अक्सर ललचाता है, आप अपनी नौकरी के कारण कभी बजा ही नहीं पाते।
सही मौका है बना दीजिए बेटे को भी रॉकस्टार।मेरे तो घर में लॉक रहकर भी दिन बहुत सुहाने बीत रहे हैं। अगर आप भी जानना चाहते हैं कुछ ऐसी ही बातें तो मुझसे जुड़े रहिए।
आज के लिए इतना ही। कल फिर मिलूँगी एक नए प्रयोग के साथ और बताऊँगी आपके लॉकडाउन को और भी आनंदित करने का एक और तरीका। तब तक आप सुरक्षित रहिए अपने घरों के भीतर।
आपकी अपनी
सोनिया निशांत
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