"कंप्यूटर अपनी प्रोग्रामिंग के अनुरूप एक विशेष भाषा में ही कार्य करते हैं। और केवल वही कार्य करने में सक्षम होते हैं जिनके प्रोग्राम उसकी मेमोरी में उपलब्ध हों।"
पापा के कमरे से उनके पढ़ाने की आवाजें मेरे कानों में पड़कर मुझे असहज कर रही थी।
"एक मशीन के विज्ञान का विद्वान मानव विज्ञान के प्रति इतना अनभिज्ञ कैसे हो सकता है!
कंप्यूटर एक मशीन है जो अपनी प्रोग्रामिंग के अनुरूप कार्य करने के लिए स्वतंत्र है फिर मुझसे मेरी प्रोग्रामिंग के विरुद्ध जाने के लिए कैसे कह सकते हैं!
यह कोई बीमारी नहीं है जिसने दीमक की तरह मेरे मस्तिष्क को चट कर लिया हो। ना मुझे किसी मनोचिकित्सक की आवश्यकता है जो मेरे दिमागरूपी पुस्तकालय में पापा की पसंद की किताबें सजा सके। यह मेरे जीवन का सबसे बड़ा सच है कि मुझे लड़के नहीं लड़कियाँ पसंद हैं। मैं चाह कर भी अपनी स्वाभाविक वृत्ति से पीछे नहीं हट सकती और आप तो जानते ही हैं ना पापा कि इंसानों को मशीन की तरह रिप्रोग्राम नहीं किया जा सकता।
आप को क्या लगता है इस तरह मुझे स्टोर रूम में कबाड़ की तरह फेंक देने से मेरे हृदय को पहुँचने वाली तरंगे बदल जायेंगी।"
आँखों से बहती हुई गरम बूंदों को अपनी हथेली से पोंछते हुए मेरे दिमाग ने प्रश्न किया।
" जाने कब इस मशीनी युग में इंसान को मशीन से अधिक वरीयता दी जाएगी? "
सोनिया निशांत
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