सहयोग
"रे साफ साफ सुन ले, तेरी छोरी ने पढ़ना है तो पढ़े ये छोटे छोटे निकर पहर के मने खेलती मिली तो घर से बाहर लिकड़ना बंद करा दूँगा। " दादाजी ने कड़कते हुए बापू से कहा था। उस दिन के बाद स्कूल की सबसे होनहार खिलाड़ी होने के बाद भी कुसुम ने कभी कबड्डी के बारे में नहीं सोचा।
" के करेगी बड़े स्कूल में पढ़ कर! मने सब बेरा सै के होवे इन बड्डे बड्डे सकूलों में! गाम के सकूल में पढ़ा ले 12 तक उसके बाद चूल्हा चौका सिखा इसने।" बापू ने एक और अहसान कर दिया था उस दिन, कुसुम को 12 तक पढ़ने की इजाजत दे दी थी। पता नहीं माँ क्यूँ देर तक रोती रही थी इसके बाद।
" मान लिया, छोरी होसियार है। इब तू घनी मेरे सर पै सवार मत हो । ठीक है पढ लेगी वकालत लेकिन जिस कॉलेज के सपने देख रही है वहाँ न भेजने के हम।यहीं हिंदी वाले कालिज से पढ़ा ले इसे बापू।" इस बार कुसुम की पढ़ाई में भाई ने योगदान दिया था।
"देख छोरी! सीधे कालिज तै घर, घर ते कालिज! मैं कोई हवा सुण ना लूँ, बाकी तू समझदार है।ना सहेली, ना टूशन! आ गी समझ? "
" हाँ माँ।"
"छोरी कालिज जाने का मतलब यो ना है के तू छोरा बन गी.. परे धर ये किताबें और माँ के गैल काम में लग। "दादी तो सदा से ही गृहस्थी के पाठ पढ़ाती रही थी।
" हाँ भेज देंगे छोरी को केस लड़ने खातिर.. हम कोई पिछड़े विचार के थोड़े हैं।" ससुर जी ने भी कुसुम के आगे बढ़ने में अपना सहयोग दर्ज करा दिया।
" देख बहू, तुझे काम करने की इजाजत दी है, ये मत समझना हमारे सर पर नाचेगी। घर भी तेरी ही जिम्मेदारी है।" कुसुम सास के सहयोग से नत मस्तक थी।
" बहू हो घर की, बाहर जाती हो तो क्या हवा में उड़ने दूँ। मेरी माँ ने भी तो जीवनभर साड़ी ही पहनी है। नौकरी करने दे रहा हूँ कम है क्या? " सच कितना तो सहयोग करते हैं आप! कुसुम की आँखों में एक बूँद चमक उठी।
" मम्मी, मैं भी आपके जैसी बनूँगी बड़ी होकर! "कुसुम के बेटी ने माँ के गले में बाहें डालकर कहा।
"नहीं बच्चे मेरी तरह नहीं... तुम आगे बढ़ना, सफल होना लेकिन बिना किसी के सहयोग के।"
सोनिया निशांत कुशवाहा
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