दिल पर पहरा। (कविता)

राज़, गहरा राज़ ही रहा हट न पाया दिल से पहरा।

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Sonia Madaan
Sonia Madaan 07 Jan, 2021 | 1 min read
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लगा लिया है अपने ही दिल पर पहरा

छिपाये बैठे हो क्या राज़ कोई गहरा?

आंखों की भाषा से यूं ज़ाहिर है होता 

कि समेटे हुए हैं तूफान कई

पर अब मुश्किल सा लगता है इन्हें रोके रखना,

दिल अजीब कशमकश में डूबा

अंदाज जताने का भी है कुछ-कुछ बदला,

नज़रें भी न साथ दे रहीं

जुबान से निकले लफ्जों का

धीरे धीरे वक्त की लहरों ने भी

सब अपने ही भीतर समेटा,

राज़, गहरा राज़ ही रहा

हट न पाया दिल से पहरा।

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Sonia Madaan

soniamadaan

Comments

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  • Kumar Sandeep · 3 years ago last edited 3 years ago

    वाह

  • Sonnu Lamba · 3 years ago last edited 3 years ago

    वाह

  • Sonia Madaan · 3 years ago last edited 3 years ago

    Shukriya 😊

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