लगा लिया है अपने ही दिल पर पहरा
छिपाये बैठे हो क्या राज़ कोई गहरा?
आंखों की भाषा से यूं ज़ाहिर है होता
कि समेटे हुए हैं तूफान कई
पर अब मुश्किल सा लगता है इन्हें रोके रखना,
दिल अजीब कशमकश में डूबा
अंदाज जताने का भी है कुछ-कुछ बदला,
नज़रें भी न साथ दे रहीं
जुबान से निकले लफ्जों का
धीरे धीरे वक्त की लहरों ने भी
सब अपने ही भीतर समेटा,
राज़, गहरा राज़ ही रहा
हट न पाया दिल से पहरा।
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वाह
वाह
Shukriya 😊
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