आसमा का परिंदा बनना चाहूं मैं
नील गगन पर उड़ना चाहूं मैं।
न हो फिक्र मुझे आशियाने की
न रूठने की न मनाने की,
जिधर चाहूं वहीं डेरा जमा लूं
ऐसा आसमां का परिंदा बनना चाहूं मैं ....
न भय हो मुझे किसी ताकत का
न चिंता हो मुझे किसी रोज़ी रोटी की,
जब चाहूं स्वेच्छा से अपना घरौंदा कहीं भी बना लूं
ऐसा आसमां का परिंदा बनना चाहूं......
न धर्म जाति की परवाह मुझे
न रिश्तों के बंधन मजबूर करें,
न सीमा न दहलीज़ हो कोई सारा आसमां ही मेरा रहे
ऐसा आसमां का परिंदा बनना चाहूं मैं..
न देखूं कोई सपना न हो टूटने का दर्द
न हो कोई अपना न छूटने का डर
बस प्रेम की भाषा और मीठी बोली मेरी जुबां पर रहे
ऐसा आसमां का परिंदा बनना चाहूं मैं....
न नफरत की दीवारें हो
न कुछ पाने के लिए लंबी कतारें हो
नफरत के भाव से अनभिज्ञ बस बेफिक्री की उड़ान हो
ऐसा आसमां का परिंदा बनना चाहूं मैं...
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