मेरे घर की बालकनी.....
जहां अक्सर, मैं खुद के साथ समय बिताती हूं
कभी दिल बहलाने को कोई नज़म गुनगुनाती हूं
कभी खुद से ही बतियाती हूं,
सूरज की पहली किरण के दर्शन मुझे वहीं से तो होते हैं
सुबह की वो ताज़ी महकती हवा
नीले आसमान की अनोखी छटा,
कभी-कभी दूर तार पर बैठे तोते भी नजर आते हैं
सुबह की एक कप चाय हो,
या दिन भर की थकान मिटानी
कुछ पल फुर्सत के मुझे बस वहीं मिलते हैं,
पक्षियों का गान हो, या खेलते बच्चों का शोर
दिन भर की चहल-पहल
नहीं होने देते मुझे बोर,
हां, इक तरफ तरूवर की डाली पर बना है
चिड़िया का छोटा सा आशियाना
बहुत सुकुन मिलता है देखकर
जब डालती है अपने बच्चों के मुंह में दाना,
व्यस्तता के रहते जब बाहर न जा पाऊं
तो, बस यूं ही टहलते हुए
बाहर के नजारे ले लेती हूं
खुद को वक्त देती हूं
और दुनिया भी देख लेती हूं।
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सुंदर रचना
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