इन हवाओं में शामिल है अब भी खुशबू तेरी
इन फिजाओं में मौजूद है तेरा एहसास
तेरी एक झलक को तरसे है मन आज भी
तेरी आरजू में बेचैन मेरी हर सांस।
ये सतरंगी मौसम भी लगे है कोरा
सूनेपन से सरोबार दिल का भौंरा
पत्तों की सरसराहट में मेरे दर्द की आवाज
गुलाबी शाम में छिपी तेरी अनमोल मुस्कान।
वह भीनी सी खुशबू मिट्टी की
जो उठती बिखेर देती है कई रंग यादों के अचानक
जब पंछियों का कलरव छेड़े मधुर तान
और तन को भिगोये ये गीली शाम।
बादलों से गिरती वो मोती सी बूंदें
जैसे गूंजे हर दिशा में मेरी सिसकियां
सांझ ढले जब धरा पर फैले अंधेरा
चुपके से करे मेरे मन की व्यथा बयां।
कोई है जो बादलों की ओट से
हाल-ए-दिल मेरा देख रहा
क्या पहुंचेगी उस तक मेरी यह दशा?
या ये जज्बात महज़ शब्दों में ही छप कर रह जाएंगे?
Sonia Madaan ✍️
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