ख्वाब।

ख्वाबों को बुनते बुनते उलझ गई जिंदगी अब न ख्वाबों से, न हकीकत से राब्ता रखते हैं।

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Sonia Madaan
Sonia Madaan 15 Mar, 2021 | 1 min read
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ख्वाबों को बुनते बुनते उलझ गई जिंदगी 

अब न ख्वाबों से, न हकीकत से राब्ता रखते हैं।


ख्वाहिशें कुछ ज्यादा बड़ी भी नहीं थी,

फिर भी जाने क्यों अब सब बेमानी लगते हैं।


कोशिश में कमी न थी, हौंसला भी बुलन्द था

मंजिल तक पहुंचने वाली राह को और न तकते हैं।


अपने लक्ष्य को पाने को चाहत थी कभी

दिशाहीन होकर आज समय संग ठहरे से लगते हैं।


घेराव है अंधकार का, बुझा सा उम्मीदों का दीया

क्या हुआ? क्यों हुआ? कुछ खबर ही नहीं!


रुका हुआ आसमान.... ठहरी हुई जमीन

हर तरफ मौसम में उदासी सी छुपी।


उम्मीद की किरण कहीं से कोई आए तो सही

मन में बसे निराशा के अंधकार को मिटाए तो सही।


खुले आसमान की तरफ बढ़ने की इक वजह मिले ज़रा

झिझकते कदमों को राह दिखे तो कहां रुके फिर भला।


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Sonia Madaan

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Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Kumar Sandeep · 3 years ago last edited 3 years ago

    उम्दा कृति

  • Sonia Madaan · 3 years ago last edited 3 years ago

    Shukriya Sandeep 😊

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