बंद खिड़की के पीछे भी...
ख्वाब हुआ करते हैं,
कुछ अनकहे सवालों के ...
जवाब हुआ करते हैं,
करूण रुदन, तो कहीं....
हंसी-ठिठोली के नाद हुआ करते हैं,
रह गई जो दबके आवाजें....
उनके चीत्कार हुआ करते हैं,
सिसकियां जो घुट गईं....
उनके कोमल वार हुआ करते हैं,
स्वर जो मिलकर गूंजते थे कभी...
उनमें तकरार हुआ करते हैं,
खुल न पाए भेद कभी...
ऐसे राज़ हुआ करते हैं,
प्रेम का संगीत बजे कभी...
दिलों में युद्ध घमासान हुआ करते हैं,
दर्द देने की जद्दोजहद कभी...
इक-दूजे के हमदर्द हुआ करते हैं,
गर्म एहसासों और खट्टे-मीठे रिश्तों के...
ओढ़े, लिहाफ हुआ करते हैं,
खिड़की के उस पार,
इन अनगिनत किस्सों के बिना...
घर भी, मकान हुआ करते हैं।
© Sonia Madaan ✍️
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.