थाम ले बाहें ऐ जिंदगी ज़रा कसकर, मैं उड़ने को हूं
बहकने की गुंजाइश नहीं, चाहे मैं नशे में हूं।
नशा मुझ पर कुछ कर गुजरने का है,
अपने हुनर से खुद के लिए आवाज़ बुलंद करने का है
एक स्वाभिमानी आवाज़ जो मेरी पहचान बने।
जुनून हदों को पार करने का है,
हदें जो बाधाओं का जाल बनकर
मुझे अपनी ही सीमाओं में रहने को विवश करें।
खुले आसमान में विचरता बादल बन,
मैं तलाशती अपनी जमीन
जहां भावनाओं संग बरस सकूं।
क्यों उलझूं मैं ज़माने की बेमानी बातों में,
तुलनात्मक नज़रिया तो सदा से रहा है
मैं अपनी मंजिल को पाने की कोशिश लगातार करुं।
अब बहकना नहीं, ख्वाहिशों को पंख देने लगी हूं
जमाने के संग अब मैं भी बदलने लगी हूं
जिंदगी, मैं तुम्हें पहले से खुल कर जीने लगी हूं।
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