नीमा की आंख खुली तो खुद को एक कमरे में पाया। चारों तरफ नज़र घुमाई तो एक पल में याद आया कि वह तो लेबर पेन में थी।
उठने की कोशिश करना चाहती थी पर कमजोरी महसूस हुई।
इतने में पीछे से सरला जी जो कि नीमा की सास थीं, ने आकर सहारा दिया, "आराम से बेटा"।
"थैंक्यू मम्मी जी", कहते हो नीमा ने अपनी सास का हाथ कस कर पकड़ लिया।
सरलाजी में प्यार से बहू के सर पर हाथ फेरा, माथा चूमा और उसे बधाई दी, "मुबारक हो हमारे घर लक्ष्मी आई है।"
सुनते ही नीमा की आंखों में एक चमक उतर आई और अपनी कमजोरी और दर्द भूल कर फौरन अपने पास लेटी अपनी नन्हीं सी जान को देखा।
नरम कंबल में लिपटी हुई, छोटे से कमल के फूल के समान प्रतीत हो रही थी नीमा की नव जन्मी बेटी!
सरला जी ने बहुत ही सावधानी से छोटी सी कली को उठाकर उसकी मां की गोद में दिया।
गुलाबी गाल, महीन बादाम के समान आंखें, कोमल उंगलियां, सिर पर घने काले केश- अपनी कोमल सी बेटी का ऐसा मन मोहक रूप देखकर उसकी आंख की कौरों से ममता छलकने को आतुर हो गई।
पर अपनी बहती भावनाओं को काबू कर उसने फौरन अपनी बच्ची को अपने सीने से लगा लिया।
काफी देर तक नीमा उसे एकटक निहारती रही।
"नीमा बेटी, अब तुम लेट जाओ और आराम करो। अभी शरीर में कमजोरी है, सारी रात तुम दर्द में तड़पती रही अब तो ये आ चुकी है... जी भर कर इसे गोद में उठाना,खेलना और प्यार करना। पर अभी तुम लेट जाओ।"
नीमा ने संभालते हुए अपनी बेटी को बिस्तर पर लिटाया और खुद भी लेट गई।
लेटते ही वह यादों के घेरे में गुम हो गई।
आज उसे संदीप की याद आ रही थी।
7 महीने पहले ही वह और संदीप मिलकर इस खुशी के दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। एक भयानक एक्सीडेंट में संदीप की मौत हो गई।
नीमा के लिए तो जैसे सब कुछ खत्म हो गया। उसकी सास और ससुर दूसरे शहर में रहते थे। खबर मिलते ही वह भी फौरन पहुंचे। नीमा तो अपने आपे में ही नहीं थी।
बहुत मुश्किल हो गया था उसे समझाना। बूढ़े मां बाप तो अपने बेटे के जाने का गम भी नहीं कर पा रहे थे,अपनी बहू को जो संभालना था.... अपने बेटे की निशानी को संभालना था।
"बस करो नीमा! अपने आप को संभालो। इतना बड़ा दुखों का पहाड़ गिरा है हम सब पर मगर इस वक्त हमें एक दूसरे का सहारा बनना है, संदीप के जाने के बाद अब तुम और आने वाली संतान ही हमारे लिए सब कुछ हो। तुम हिम्मत हार जाओगी तो हमारे लिए खुद को संभालना मुश्किल हो जाएगा।" सरला जी ने अपने आप को मजबूत करते हुए अपनी बहू को हिम्मत और सांत्वना दी।
किसी तरह अपनी सास द्वारा दी हिम्मत, स्नेह और अपनेपन से नीमा ने अपने आप को संभाला।
नीमा ने भी जल्द ही समझ लिया की संदीप के बाद अब उसकी जिम्मेदारी थी, अपने सास-ससुर और अपनी आने वाली संतान के प्रति।
नीमा के लिए यह सब आसान नहीं था ....पर अपने अजन्मे बच्चे का एहसास और अपने माता पिता समान सास ससुर का साथ, सहयोग और प्यार से नीमा ने अपने भीतर एक नई शक्ति और ऊर्जा को महसूस किया।
अपनी बच्ची की हल्की सी रोने की आवाज सुनकर नीमा की आंख खुली और उसने फौरन अपनी बच्ची को अपनी गोद में उठाकर उसे अपनी ममता भरे आलिंगन में ले लिया। दूसरी नजर उसने अपनी सास की तरफ दौड़ाई .... वो यहीं देख रही थीं।
नीमा ने मन में हीं सोचा......अब ये छोटी सी कली ही तो उनके भी जीवन का आसरा थी। मुझे खुद को भी संभालना होगा। मुश्किलों के आगे हार मानना मुझे स्वीकार्य नहीं!
"शुक्रिया मां, मुझे इस नई जिंदगी से मिलाने के लिए। आपका साथ ना मिलता तो न जाने मेरा क्या होता!"
"नहीं नीमा, शुक्रिया तो हमें कहना चाहिए तुम्हें... हमारे जीवन को एक नई उम्मीद देने के लिए। संदीप के बाद अब तुम दोनों ही तो हमारे लिए सब कुछ हो"।
अपनी बच्ची के जन्म के कुछ महीनों बाद ही नीमा जिंदगी की चुनौतियों से लड़ने के लिए तैयार थी।
अपने वर्तमान घर को उसने किराए पर दे दिया जिससे की आमदनी मिलती रहे और अपने सास ससुर के साथ उनके शहर में शिफ्ट हो गई।
पढ़ी-लिखी होने के बावजूद नौकरी का इंतजार ना करते हुए उसने घर से ही कोई काम शुरू करने का निर्णय लिया ताकि अपनी बेटी का भी ख्याल रख सके। फैशन डिजाइनिंग का कोर्स उसने किया ही था। अपनी सास के सहयोग से उसने एक बुटीक की शुरुआत की धीरे धीरे उसका यह काम अच्छा चल पड़ा।
© Sonia Madaan
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