वह कल का ज़माना ही अच्छा था
एक दिन लगा चलो
कुछ दूर निकल जाते हैं
कुछ दूर निकले तो लगाए
वो # गाँव ही अच्छा था
वो वो # पगडंडियाँ ही अच्छी थी,
वो # पंपिग सेट पे
# 22 वो ही अच्छी थी वो
वो का # लहलहाना व
# खलिहंस में जाना
ही अच्छा था,
वो गन्ने को # चुभना ही अच्छा था
वो वो चूल्हे की # दाल-रोटी संग घी
मिला खाना ही अच्छा था
वो वो # तरकारी का # स्वाद ही अच्छा था
वो तड़के उठ # माड़_भात खाना ही अच्छा था
ना चाय थी ना कॉफ़ी थी लेकिन
वो # सवेरे की # दही संग
# भेली खाना ही अच्छा था
वो # छत पर सभी खंड # सोने
ही
अच्छे थे खुले # आकाश तले
# तारे गिनना ही
अच्छे थे कभी # सप्तऋषियों को देखने तो
कभी # ध्रुव तारे को # टकटकी लगा
निहारना ही अच्छा था।
वो # जल्दी जल्दी होने के साथ ही अच्छी तरह से
# चिड़ियों का मुझे बुलाना ही अच्छा था
वो वो # आजी, नानी, दादियों के संग
# पीछे-पीछे लग जाना ही अच्छा था
कभी उनकी उनकी # मार थी तो कभी
उनकी # पुंछी मिर्ची ही था। थी। ।
भोर होते पुजे की # घंटियों की
आवाज़ सुनकर ही अच्छा लगा था
# प्रसाद के लिए # घण्टों # च से
अच्छा लगा था
वो # गइया का माँ-माँ कर
बुलाना ही अच्छा था
वो # बाबा को पागेगी कर सो
सारा # जियाआ का
प्यार पाना ही अच्छा था
और क्या-क्या बोलूँ
वो # सब कुछ अच्छा था
जो मैं छोड़ के
काफ़ी दूर निकल आयी
और सबसे ज्यादा तो
वो # अम्मा के कारणो का
# सहलाना ही अच्छा था
सच कहूँ तो अब लगता है
हम कहाँ से कहाँ आ गए
छोड़ो आज का जमाना
# वो कल का जमाना ही अच्छा था।
आइए चलते हैं फिर से उसी जने की ओर ... वही
© .विजय लक्ष्मी राय सोनिया
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.