ये कोरोना नहीं ... ,,
माँ प्रकृति की मार है हम सबको,
माँ प्रकृति की फटकार है हम सबको,
गूँजती पूरी पृथ्वी पर हाहकार है हम सबको,
आकाशवादी सी आवृत्ति की झंकार है हम सबको,
ये तुम दो ना, तुम दो ना,
ये माँ प्रकृति का प्यार है हम सबको।
माँ प्रकृति नि: शब्द हो बार - बार ये कहती है ...
खुद को खुद से जोड़ो ना,
बहिर्मुखता में आप भटको ना,
स्वयं को अंतर्मुखी कर के देखो ना,
परम आनन्द तुम पा लो ना,
तकनीकी में यूँ तुम घुसो मत ना,
माँ प्रकृति के गोंद में लिपटे रहो ना,
दैनिक ब्रम्हमुहूर्त में आप उठते हैं ना,
तुम रात - रात जागो मत ना,
आप दिन - दिन सो ओ ना,
तुम जप, तप, ध्यान, दैनिक करते रहो ना,
तुम मनन, चिन्तन, स्वाध्याय से जुड़ते रहो ना,
तुम महाकाल्यन में रमते रहो ना,
तुम काम करते हो, गुस्सा, लोभ से बचते रहो ना,
तुम यज्ञ और मंत्रोच्चारण दैनिक करते रहो ना,
गलत विचारों के तरंगो से आप बचके रहें ना,
मानसिक शक्ति से खुद को लबालब भर लो ना ,,,
अपनी दृढ़ संकल्प शक्ति शसक्त करके रहो ना,
आप प्रतिकूल परिस्थितियों से डरो मत ना,
तुम और सामना करना पड़ेगा,
तुम स्वयं की शक्ति को भी पहचान लो ना,
तुम भारत माँ की धरती को जान भी लो ना,
आप अपनी धरोहर अपनी विरासत को मान लो ना,
आप अपनी संस्कृति अपना सम्पदा को सम्मान दो ना,
क्योंकि आप ही अपने भारत के अपने झंडे के शान हो ना।
जो इतना ज्ञान ना हो ....,
तो आपम्हर ये दोना क्या ,,,
हरोना भी कुछ नहीं बिगाड़ पिंगसगा।
अब समझे तुम ये माँ प्रकृति की मार ही है .. !!
तो चलो ले आज एक सपथ सप
ना दूर होगी प्रकृति से तनिक ।।
कर लेंगे हम सब मिलकर बचत ..,
तो आ ओ सब हाथ बढ़ाओ ..,
और साथ में एक नाद की गूँजकर ..,
इससे ऊर्जा की भरमार होगी,
जिससे जीवनी शक्ति की भरमार मिलेगी ।।
ये कोरोना नहीं,
माँ प्रकृति की मार है हम सबको,
माँ प्रकृति की फटकार है हम सबको,
गूँजती पूरी पृथ्वी पर हाहकार है हम सबको,
आकाशवादी से ज्यादा की आवृत्ति में आता है
एक झंकार है हम सबको ...,
ये तुम करो ना, तुम सब करो ना
माँ प्रकृति का प्यार है हम सबको ,,,,
- विजय लक्ष्मी राय "सोनिया"
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