(विषय प्रदत्त स्याही के रंग)
***********************
सहमति
"सुना है! आप कविताएं लिखती हैं!!"
दो अनजान लोगों को बात करने के लिए शब्दों का सहारा चाहिए था, तो कौस्तुभ ने यहीं से शुरुआत की।
दुपट्टे के छोरों को उंगलियों से घुमाते हुए विशाखा ने हाँ में सर हिलाया।
"आप काव्य पाठ के लिए भी जाती है?"
विशाखा समझ रही थी बात धीरे-धीरे मुद्दे पर आ रही है। दो बार पहले भी यही सवाल-जवाब हुए थे और दहेज पर सहमति ना बनने के बाद उसे काव्य गोष्ठिओं में रात बिताने वाली चरित्रहीन का तमगा दिया गया था। पिताजी गुस्से से लाल-पीले हो गए थे। मेरा कवियत्री होना उन्हें हमेशा गर्व से भर देता था और माँ के लाख रोकने के बावजूद लड़के वालों के आते ही मेरे प्रशस्ति पत्र और सम्मान पत्र दिखाना शुरू कर देते थे।
"अरे! आप तो कुछ बोल ही नहीं रही है। कवि ऐसे तो नहीं होते।"
"देखिए!! कौस्तुभ जी! मैं काव्य गोष्ठियों में जाती हूँ। कभी-कभी गोष्ठियां देर रात तक भी चलती है। यदि आपको पसंद नहीं तो अभी बता दीजिए। मैं बाद में अनर्गल प्रलाप सुनना नहीं चाहती।" विशाखा ने एक ही श्वास में कह दिया।
"विशाखा सच कहूँ, तो कविताएं मुझे समझ नहीं आती या कहो तो आज तक कोई समझाने वाला नहीं मिला। बचपन से मुझे चित्र बनाने का बड़ा शौक था। उसमें ही अपना भविष्य देखता था। परंतु परिवार के दबाव में इंजीनियर बनना पड़ा। मैं समझ सकता हूँ कि मन का करने में कितना आनंद आता है। गोष्ठियां रात को होती है इसका मतलब यह नहीं कि आप शादी के बाद अपने मन का नहीं कर सकती। मेहंदी के रंग से स्याही के रंग नहीं सूखने चाहिए। अगर आप की सहमति है तो इकरार एक कविता के रूप में कीजिएगा।"
विशाखा को अपना कौस्तुभ मिल गया था। किसने कहा वैलेंटाइन सिर्फ एक दिन मनाया जाता है। ऐसा हमसफ़र हो तो हर रोज प्रेम दिवस होगा।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.