बड़ी अम्मा आज बहुत खुश थीं।सुबह से कई बार वो रमेश(घर के नौकर) से पूछतीं-"बेटा क्या पंडित जी आ गए"।एक वो ही तो था उनका राजदार ,सखा और सबसे बड़ी बात उनका रूम पार्टनर भी।घर से सबसे ऊपरी मंजिल में बना एक कमरा जो शायद किसी जमाने में स्टोर रूम का कार्य करता था, छः वर्ष पूर्व उसमें से कबाड़ निकाल रंगरोगन कर उसे बड़ी अम्मा के रहने लायक बना दिया गया।साथ ही अटैच वाशरूम भी।छत में एक खटिया डाल दी गयी थी ताकि अम्मा यदि धूप में बैठना, लेटना चाहे तो इस्तेमाल कर सकें।इस तरह अम्मा अब पूरी दुनियां के साथ घर के बाकी सदस्यों से अलग थलग ऊपर ही रहकर अपने ऊपर जाने का इंतज़ार भर ही तो कर रही थी।पिछले तीन वर्ष पहले शायद भगवान से उनका एकाकीपन देखा नहीं गया और घर मे रमेश नाम के एक अनाथ बच्चे को भेज दिया।जो बेचारा दिन भर काम मे लगने के बाद अम्मा को खाना देने आता और वहीं कमरे में दरी बिछा के लेट जाता।इस तरह वो अम्मा के अब सबसे करीब था।
वैसे घर की नयी पीढ़ी तो अम्मा को सठियाई बुढ़िया ही समझते थे..घर मे नीचे क्या चल रहा है, अम्मा को कुछ पता नहीं चलता था।कभी कभार यदि अम्मा की बिटियाएं जो खुद भी अब अम्मा जैसी ही हो गईं थी मायके आतीं तो अम्मा से मिलने ऊपर आ जातीं।
ये तो थी अम्मा की बैकग्राउंड स्टोरी।
तो आज अम्मा बहुत ही खुश हो गयीं जब रमेश ने उन्हें बताया कि आज तो बूढ़े बाबा का श्राद्ध है।अम्मा को अब याद भी नहीं रहता था कि कब श्राद्ध है या कब कोई त्योहार।वैसे त्योहार से भी उनकी ज़िंदगी मे कोई फर्क नहीं पड़ता था।फर्क पड़ता था तो केवल श्राद्ध से क्योंकि वो उनके पति का होता।इस बहाने आज घर मे पकवान बनेंगे और पहली थाली उनके लिये ही निकलेगी।बेटा बहु,पोते-पोतियां आज उनके कमरे में आएंगे।उनके हाथों से दक्षिणा पंडित जो को दिलवाएंगे।बस वर्ष में एक ही दिन होता था जब उन्हें पूरी ,खीर,रायता चावल खाने को मिलेगा।अम्मा बहुत बेचैन थी,शायद उनकी आँख दोबारा लग गयी थी,दिन चढ़ने को आया था और रमेश सुबह एक गिलास चाय के अलावा उन्हें कुछ क्यों नहीं दे गया,ये सोच वो बिस्तर से उठने लगी तो देखा वो बिना कोशिश के ही बिस्तर से उठ गयीं।वो हैरान थीं कि आज उनके घुटनों में भी कोई दर्द नहीं था।पर उनके मुँह में खीर, पूरी का स्वाद ही आ रहा था।-"रमेश कहाँ है तू,और थाली क्यों नहीं लाया रे"..ये कहते हुए न जाने कब आज छः वर्षो में वो जीना उतर नीचे हॉल में आ गयीं।बहुत लोगों की भीड़ देख वो बोली-"लल्ला क्या हो रहा है यहाँ, बहु कहाँ हो तुम".।पर कोई उनकी आवाज़ सुन नहीं रहा था।दूर बड़ी बिटिया को रोते देख वो उसके पास गयीं-"अरी बिटिया तू कब आयी,और क्यों रो रही है."?.
पर वो भी उसे अनदेखा कर रही थी।अम्मा की समझ मे नहीं आया कि क्या हो रहा है।अचानक वो पलटीं और उनकी नज़र ज़मीन में सफेद कपड़ो से लिपटी एक बूढ़ी सी काया पर पड़ी, जिसके सिरहाने में सुगन्धित धूप जल रही थी। अम्मा उसके पास गयी और हक्की-बक्की रह गयी।ये वो खुद थी और कोई नहीं......
धन्यवाद।
आपकी स्नेह
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