आ जाओ प्रिये
जीवन जननी मैं मातृशक्ति,
मेरी शक्ति से बाल तृप्त,
मेरा आँचल है स्नेहसिक्त,
जग को मैं देती देह युक्ति।
जीवन में मृदु सह भाव लिये,
मुस्कान सहज संस्कार लिये,
नयनों में सपन हजार लिये,
बाहों में प्रेम का हार लिये।
मैं अपना यौवन जीत हार,
सब देती मानुज पर ही वार,
करती मैं जो भी हूँ श्रृंगार,
जप -तप मेरा है घर-संसार।
मैं जीवन सरिता पार हुई,
नव जीवन नव संस्कार हुई,
कई बार हुई नव चार हुई,
बेटी बहन सहचार हुई।
हर रूप मेरा हर रंग मेरा,
है धरा सृष्टि अवतार मेरा,
अवनी अम्बर आगाज मेरा,
है प्रेमशक्ति आधार मेरा।
मेरी मुस्कान के बाशिंदे,
मेरी ही त्याग के मानिंदें,
कब साथ हुए कब दारिन्दें,
यह पीड़ा मन में है क्रौंधे।
फिर भी मैं हवा बासंती हूँ,
इस युग की पावन शक्ति हूँ,
मानव की ममता प्रियसी हूँ,
मैं ही इस धरा की नियति हूँ।
आ जाओ प्रिये हम स्वर्ग रचें,
मिलजुल हम पावन पर्व रचें,
नर नारी सहज सौंदर्य रचें,
कण मन में रास सुबास रचें।
स्नेहलता द्विवेदी।"आर्या'
Comments
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बहुत सुंदर लिखा आपने। कृपया कर शीर्षक को एडिट कीजिये।
कृपया शीर्षक वाले कॉलम में Title ज़रूर डालें
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