और मैंने तय कर लिया की क्या करना है... मोबाइल लिया और पैसे अपनी माँ के अकाउंट मेँ ट्रांसफर कर दिए.... माँ का फ़ोन आया.. दिव्या ये क्यूँ किया तुमने...
माँ आप बचपन से कहते आये हो ना की मैं ही आपका बेटा हुँ फिर आज मुझे बेटा होने का फर्ज अदा करने से क्यूँ रोक रही हो.. या सिर्फ कहने के लिये कहते थे.. माँ बोल पड़ी बेटा ऐसा नहीं है बेटा तू तो हमारे लिये सबकुछ है. पर अब तेरी शादी हो गयी है और तेरे ससुराल वालो को पसंद नहीं है ना की तू हमें पैसे दे फिर तू क्यूँ बिना बात के लिये उनसे लड रही है.. रहना तो वही है ना तुझे.
हाँ माँ मुझे यही रहना है आप मेरी चिंता मत करो... मैं इनसे बात कर लुंगी...
फ़ोन रखा ही था की इतने मेँ पति नीरज का फ़ोन आया.. दिव्या तुमने पैसे ट्रांसफर किये... तो दिव्या ने हाँ बोला.. और बोली शाम को घर आ जाओ फिर बात करते है..
शाम को नीरज घर आया और आते ही दिव्या पर बरस पड़ा.. तुम्हे ज़ब माँ ने मना किया था तो फिर तुमने ऐसा क्यूँ किया... अब तुम्हारी शादी हो गयी है क्या ये तुम्हारे माँ पापा को पता नहीं..
और ऐसा ही था तो उन्हें तुम्हारी शादी ही नहीं करनी थी.. नीरज की आवाज़ सुन सब कमरे से बाहर आ गए. माँ गुस्से से दिव्या को देख रही थी.. ज़ब नीरज ने सब बोल लिया तब दिव्या ने उसे पानी का ग्लास दिया और बोली...
देखिये मुझे माफ कर दीजिये मैंने माँ के मना करने के बाद भीं अपनी माँ को पैसे दे दिए..
उन्हें जरूरत थी पापा की बीमारी के कारण सारे पैसे ख़त्म हो गए.. वरना इतने सालो मेँ कभी उन्होंने एक शब्द भीं कहा क्या या तुमसे.. नीरज उनका बेटा भीं मैं ही हुँ और बेटी भीं मैं ही हुँ.. उनके लिये उनकी पूरी दुनिया मैं ही हुँ.. और उन्होंने तो मुझे बताया भीं नहीं.. वो तो लोन ले रहे थे बैंक से... बैंक वाले अंकल ने मुझे बताया..
जैसे तुम इस घर के बेटे हो इस घर का, यहाँ के लोगो का ख्याल रखना तुम्हारी जिम्मेदारी है वैसे ही मैं उस घर का बेटा भीं हुँ.. तो उनका ख्याल रखना मेरी जिम्मेदारी है..
और ये मेरी सैलरी के पैसे है जो मुझे इसीलिए ही मिल रहे है क्युकि उन लोगो ने मुझे इस लायक बनाया है की मैं कमा सकूँ... तो मेरा फर्ज बनता है उनकी मदद करना...
और अगर माँ का यह तर्क है की मेरी शादी हो गयी है अब मैं अपने कमाए पैसे अपने माँ पापा के लिये खर्च नहीं कर सकती तो इस हिसाब से यों तुम्हारी भीं शादी हुयी है मुझसे... फिर तो तुम्हे भीं अपने पैसे अपने माँ पापा पर खर्च नहीं करना चाहिये...
दिव्या के मुँह से ये बात सुन कर माँ सन्न रह गयी.. और कुछ बोलने जा रही थी की उससे पहले ही पापा जी बोल पड़े... अब तुम कुछ नहीं बोलोगी...
बहु का निर्णय बिल्कुल ठीक है.. ज़ब वो हमारे घर की देखभाल मेँ कोई कमी नहीं रखती तो उसे उसके माँ पापा का ख्याल रखने का भीं पूरा हक़ बनता है.. वैसे तो ये काम नीरज को करना चाहिये था.. पर... बेटी दिव्या मुझे माफ कर दो शायद मेरी परवरिश मेँ ही कोई कमी रह गयी जो मेरा बेटा तुमसे ऐसी बाते कर रहा है..
तुम आराम से अपने माँ पापा की मदद करो और कुछ चाहिये तो मुझसे कहना.. मैं तुम्हारे साथ हुँ.. तुम वास्तविक रूप मेँ बेटा हो जो अपने दोनों घरो को संभाल रही हो.. सादा खुश रहो.
दिव्या ने आँखों मेँ आँसू लिये पापा जी का आशीर्वाद लिया और बिना कुछ कहे रसोई मेँ खाना बनाने चली गयी....
मैं ही उनका बेटा भीं हुँ
अपने माँ पापा की देखभाल का हक़ लड़की का क्यूँ नहीं... क्या सिर्फ लडके ही ऐसा करने के अधिकारी होती है...
Originally published in hi
Sneha Dhanodkar
23 May, 2020 | 1 min read
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