चौंक गए न आप लोग ऐसा शीर्षक पढ़कर ,क्योंकि औरतों को तो बाकी सबको खुश रखना आना ही चाहिए चाहे वो खुश हो न हो पर घर के लोगों पति ,सास-ससुर, माता-पिता ,रिश्तेदार ,पड़ोसी सबसे डरते रहना चाहिए और अपने कर्त्तव्य जरूर निभाने चाहिए और ऐसे कैसे कि सबको खुश रखना ही छोड़ दे ,ये तो बहुत गलत बात है और अपनी खुशी के लिए सबसे पहले सोचे। औरत होकर इतनी हिम्मत खुद खुश रहेगी और परिवार की ख़ुशी का कोई ख्याल नहीं रखेगी।
ओफ्फो कैसी औरत है ,अरे एडजस्ट करो पति है, कुछ भी कह सकता है और कुछ भी कर सकता है ,उसके कपड़े धोते रहिये,बढ़िया खाना बनाते रहिये, और उसके साथ निभाइये पर चुप रहकर अगर बोलीं आप तो सुनने को तैयार रहिए कि कितनी कुसंस्कारी बीवी है पति को जवाब दिया इसने।
और घर के काम वो तो औरतों को करने ही चाहिए क्योंकि पति तो परमेश्वर होता है न ,और कहीं औरत ने कुछ काम पति से बोल दिया तो बस आफत ही आ गई समझो ,हर जगह चर्चा शुरू हो जाएगी कि 'अरे पता है फलानी तो अपने पति से काम करवाती है और वो 'बेचारा' उसे करना भी पड़ता है (जैसे कि महाशय खुद का छोटा मोटा काम करके भी पत्नी पर अहसान कर रहे हैं)। और भी बातें जैसे कि 'तुम घर में मसाले नहीं पीसती क्या? ओह ,ये तो गलत है,घर में पिसे मसाले तो स्वास्थ्य के लिए अच्छे होते हैं ,तुम इतना भी नहीं करती तो दिन भर क्या सोती हो ?''
जी में तो आता है मुंह पर जवाब दूं 'अरे हाँ रे दिन भर तानकर सोती हूँ मजे से खाती हूँ और अब लोगों की उतनी परवाह नहीं करती' पर चुप लगा जाती हूं ऐसे लोग समझेंगे तो है नहीं फिर करता फायदा बोलने का।वैसे भी आधी उम्र तो इसी उधेड़बुन में निकल गई कि ये नहीं किया तो वो क्या कहेंगे? और वो नहीं किया तो ये क्या कहेंगे ? सब काम अच्छे से करने के बावजूद कोई मैडल तो अब तक न मिला मुझे और न मिलेगा क्योंकि मेरी तो ड्यूटी बनती है काम करना और सबको खुश रखना और चुप रहकर सबकी बाते सुनना जवाब न देना क्योंकि ऐसा ही करना चाहिए अच्छी औरत,बीवी,बहू,मां को।
लकीर के फ़कीर बने हैं हम सब और उसी लकीर को पीटते रहते हैं क्योंकि ये सब बदलने की हिम्मत तो हैं नहीं हममे और गलत होने पर भी चाहे बड़ा हो या छोटा संस्कार तो निभाने ही हैं हमें।
पर सच बहुत हो गया अब, जब देखो तब 'क्या किया दिन भर कुछ ख़ास तो दिख नहीं रहा चेंज घर में या तुममे', गुस्सा तो इतना आता है ये सब सुनकर कि दो दिन भी छोड़ दिया न ये सब तो फिर देखना, पर मेरी खुद की कमजोरी है कि नहीं छोड़ पाती काम करना वरना कभी कभी तो मन यही करता है कि मै भी चैन ले लूँ ,कभी अपनी खुद की ज़िन्दगी अपने मन से जी लूँ, नहीं ,लेकिन ऐसा तो कैसे हो सकता है जिम्मेदारियां कैसे छोड़ दूँ ,किसके सहारे और भरोसे पर छोड़ दूँ?
पर हाँ, अब अकल इस्तेमाल करती हूं और अब ऐसी बातों और इनको करने वाले फालतू लोगों को इतनी तवज़्ज़ो देती ही नहीं मै, क्योंकि अब खुद से भी प्यार करना है मुझे ,और हां, सबकी देखभाल करना भी नहीं छोडूंगी पर अपनी देखभाल करना भी मैंने सीख लिया है क्योंकि खुद को तो मुझे ही संभालना होगा और कोई भी नहीं आने वाला मेरी मदद को तो फिर क्यों न ये भी नया करके देख लूँ मै। और फिर कहने वालों का क्या है वो तो कुछ कहेंगे ही तो बेहतर है कि अपनी अकल लगाओ और बेकार की बातों पर ध्यान ही न दो जिसे जो कहना है कहे ,इसलिए अब सबको खुश करने की कोशिश नहीं करती मैं क्योंकि अबसे पहले खुद को खुश और स्वस्थ रखूंगी सकारात्मक सोचूंगी और अपनी ज़िन्दगी अपने हिसाब से जियूँगी।
आप सबका क्या कहना है इस विषय पर कि औरतों को सबको खुश रखते रहना चाहिए क्या,चाहे खुद की शख्सियत ही मिट जाये या अपने बारे में भी सोचने का हक़ है औरतों को भी ? कृपया कमेंट में अपने विचार जरूर बताएं।
स्मिता सक्सेना
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